जयंती-कथा कार्यशाला…
पटना (बिहार)।
नवोदित लेखकों को भाषा के प्रति सचेत रहना चाहिए। शब्दों के प्रयोग के पूर्व उन्हें चाहिए कि वे उनका अर्थ और लिंग को अवश्य जान लें। यही शब्द की साधना है। भाषा भले सरल और सबके लिए सुबोध हो, किंतु वह दोष-मुक्त होनी चाहिए।
यह बात रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सम्मेलन की स्थापना के सूत्र-धार रहे मनीषी हिन्दीसेवी रामधारी प्रसाद ‘विशारद’ की १२३वीं जयंती पर आयोजित ‘कथा-कार्यशाला’ की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ. अनिल सुलभ ने कही। डॉ. सुलभ ने कहा कि विशारद जी के मन में ही सबसे पहले प्रांतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की स्थापना का विचार आया और उनके ही प्रयास और दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण वर्ष १९१९ में स्थापना हुई। कथा के रूप, भेद, शिल्प-शैली और रचना-विधान का प्रशिक्षण देते हुए वरिष्ठ कथा-लेखक भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि, बाज़ारवाद के इस युग में रचनात्मक कथाओं की व्यापक भूमिका हो सकती है। मन पर गहरा प्रभाव डालने वाली मूल्यपरक कथाएँ समाज की मानसिकता बदल सकती हैं। उन्होंने कथा-साहित्य के विविध अवयवों, और सृजन के संबंध में विस्तारपूर्वक चर्चा की।
चर्चित उपन्यासकार और पत्रकार विकास कुमार झा ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए इस बात पर बल दिया कि, आज के रचनाकारों को वर्तमान की चुनौतियों को गम्भीरता से लेना होगा। चुनौती यह है कि आज के सच को कल्पना के आधार पर लिखना है। वरिष्ठ लेखिका डॉ. प्रीति प्रवीण खरे (भोपाल) तथा डॉ. ध्रुव कुमार ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में श्री द्विवेदी ने ‘गुंडे’ शीर्षक से, विभारानी श्रीवास्तव ने ‘जाल से फिसली’, डॉ. पुष्पा जमुआर ने ‘जुगाड़ू’, मधुरेश नारायण ने ‘आग्रह’ और कृष्णा मणिश्री श्याम बिहारी प्रभाकर ने ‘वाह री मित्रता’ सहित अन्य ने भी अपनी लघुकथा का पाठ किया।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रचार मंत्री डॉ. ध्रुव कुमार ने किया। सम्मेलन में अर्थ मंत्री प्रो. सुशील कुमार झा, डॉ. सुनील कुमार उपाध्याय, डॉ. कुंदन लोहानी, नीता श्रीवास्तव और अनु गुप्ता आदि साहित्यकार और प्रबुद्धजन उपस्थित रहे।
मंच संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने किया । धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।