पटना (बिहार)।
साहित्यिक कार्यशाला के माध्यम से हम रचना का सिर्फ एक ढाँचा खड़ा कर सकते हैं, लेकिन रचनाकार अपनी रचनाशीलता से उसमें आत्मा डाल पाते हैं। हम लगातार अपने को माँजते हुए लेखन जारी रखें और अपने पूर्ववर्ती, समकालीन एवं नए लेखकों को पढ़ें।
सुप्रसिद्ध कथाकार भगवती प्रसाद द्विवेदी ने यह बात वरिष्ठ कवयित्री डॉ. प्रीति प्रवीण खरे (भोपाल) के विशिष्ट आतिथ्य में आयोजित साहित्यिक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कही। इके प्रथम सत्र में कथा-विमर्श के तहत लघुकथा पर चर्चा एवं प्रश्नों पर वरिष्ठ लेखकों द्वारा समाधान किया गया। दूसरे सत्र में पद्य की विभिन्न धाराएँ प्रवाहमान रही।
डॉ. खरे ने लघुकथा की मारक क्षमता पर वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं के साथ युवा रचनाकारों के लेखन को महत्व को स्वीकार किया और कहा कि, युवा लेखकों से हमें न केवल नई पीढ़ी के दृष्टिकोण को समझने में सहायता मिलती है, बल्कि पीढ़ियों के अंतराल को कम करने में भी मदद मिलती है। उन्होंने लघुकथा और गीत अपने अंदाज में सुनाकर कार्यक्रम की भव्यता बढ़ा दी। मुख्य अतिथि रत्ना पुरकायस्थ ने अपने हरफनमौला अंदाज में जहाँ लोगों में आज के इस दौर में कम पढ़ने की बात रखी, वहीं स्त्री-विमर्श जैसे गंभीर विषय को उठाकर कार्यक्रम को सार्थकता दी। कवि हरेन्द्र सिन्हा और संस्था के उपाध्यक्ष मधुरेश नारायण ने भी तरन्नुम छेड़कर माहौल में तरंगें उत्पन्न कर दी। प्रसिद्ध साहित्यकार सिद्धेश्वर ने अपनी रचना ‘मेरे हृदय के सागर में नदी बनकर समा जाओ तुम’ का पाठ कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। संस्था की अध्यक्ष विभा रानी श्रीवास्तव ने सफल संचालन करते हुए अपनी लघुकथा ‘समर कैंप’ का पाठ किया। धन्यवाद ज्ञापन शायर मो.नसीम अख्तर ने किया।