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शरद ऋतु

बाबूलाल शर्मा
सिकंदरा(राजस्थान)
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सर्दी का संकेत हैं,शरद पूर्णिमा चंद्र।
कहें विदाई मेह को,फिर आना हे इन्द्र।
फिर आना हे इंद्र,रबी का मौसम आया।
बोएँ फसल किसान,खेत मानो हरषाया।
शर्मा बाबू लाल,देख मौसम बेदर्दी।
सहें ठंड की मार,जरूरत भी है सर्दी।

मौसम सर्दी का हुआ,ठिठुरन लागे पैर।
बूढ़े और गरीब से,रखती सर्दी बैर।
रखती सर्दी बैर,सभी को खूब सताती।
जो होते कमजोर,उन्हें ये आँख दिखाती।
कहे लाल कविराय,यही तो ऋतु बेदर्दी।
चाहे वृद्ध गरीब,आय क्यों मौसम सर्दी।

गजक पकौड़े रेवड़ी,मूँगफली अरु चाय।
ऊनी कपड़े पास हो,सर्दी मन को भाय।
सर्दी मन को भाय,रजाई कम्बल होवे।
एसी बंद मकान,लगा के हीटर सोवे।
कँपे गरीबी हाड़,लगे यों शीत हथौड़े।
रोटी नहीं नसीब,कहाँ फिर गजक पकौड़े।

ढोर मवेशी काँपते,कूकर बिल्ली मोर।
बेघर,बूढ़े दीन जन,घिरे कोहरे भोर।
घिरे कोहरे भोर,रेल बस टकरा जाती।
दिन में रहे अँधेर,गरीबी तब घबराती।
सभी जीव बेहाल,निर्दयी शरद कल़ेशी।
जिनके नहीं मकान,मरे जन ढोर मवेशी।

युवा धनी की मौज है,क्या कर लेगा शीत।
मेवा लड्डू खाय ले,मिले रजाई मीत।
मिले रजाई मीत,गर्म कपड़े सिल जाते।
मिले रोज पकवान,बदन को खूब पकाते।
कहे लाल कविराय,खाय गाजर के हलुवा।
शीत स्वयं कँप जाय,मना लेते मौज युवा।

परिचय : बाबूलाल शर्मा का साहित्यिक उपनाम-बौहरा हैl आपकी जन्मतिथि-१ मई १९६९ तथा जन्म स्थान-सिकन्दरा (दौसा) हैl वर्तमान में सिकन्दरा में ही आपका आशियाना हैl राजस्थान राज्य के सिकन्दरा शहर से रिश्ता रखने वाले श्री शर्मा की शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. हैl आपका कार्यक्षेत्र-अध्यापन(राजकीय सेवा) का हैl सामाजिक क्षेत्र में आप `बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ` अभियान एवं सामाजिक सुधार के लिए सक्रिय रहते हैंl लेखन विधा में कविता,कहानी तथा उपन्यास लिखते हैंl शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र में आपको पुरस्कृत किया गया हैl आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः हैl

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