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शाहबाज़ शरीफ की परेशानियां

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हमेशा की तरह पाकिस्तान की इमरान सरकार ५ साल के पहले ही उलट गई। इस बार उसे पाकिस्तान की फौज ने नहीं, अदालत ने उलटाया है। यदि फौज उसे उलटा देती तो भी अदालत उसे सही ठहरा देती, जैसे कि उसने पिछले तख्ता-पलट के वक्त ‘परिस्थिति की अनिवार्यता’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया था, लेकिन इमरान खान ने इस बार नासमझी के चलते अदालत को खुद ही मौका दे दिया कि उसके फैसले पर कोई उंगली नहीं उठा सके। खुद इमरान ने भी अदालत के इस फैसले को गलत नहीं कहा है कि भंग संसद को वापिस लाया जाए और अविश्वास प्रस्ताव को दुबारा पेश किया जाए। यही हुआ, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ १७४ मत ही पड़े। असली सवाल यह है कि शेष सभी सांसद कहां थे ? दल-बदलू सांसद भी गैर-हाजिर क्यों रहे ? वे यदि विरोध में मत नहीं देना चाहते तो तटस्थ रह सकते थे, लेकिन इमरान के अनुयायियों की तरह उनके दल-बदलू भी विरोधियों के साथ खुलकर नहीं चले, यह तथ्य नई शाहबाज शरीफ सरकार के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकता है। यदि इमरान का जन-आंदोलन तूल पकड़ गया तो ये दल-बदलू ही नहीं, नई सरकार के कुछ सांसद भी टूटकर इमरान की पीटीआई से मिलने की कोशिश कर सकते हैं। इमरान के इस आरोप के ठोस प्रमाण अभी तक सामने नहीं आए हैं कि उनकी सरकार अमेरिका के इशारे पर गिराई गई है, लेकिन वे ‘अमेरिकी हस्तक्षेप से बनी इस सरकार’ के खिलाफ यदि कोई जन-आंदोलन खड़ा कर सके तो इस नई सरकार को अगला डेढ़ साल काटना मुश्किल हो जाएगा। भावी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने संसद में और उसके बाहर भी बहुत ही संतुलित और मर्यादित विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने प्रतिशोध, अतिवाद, शक्ति के दुरुपयोग आदि से मुक्त रहने का वादा किया है। वे अहंकारी और निरंकुश स्वभाव के व्यक्ति नहीं हैं लेकिन पीपीपी के बिलावल भुट्टो और मौलाना फजलुर्रहमान से वे कैसे पार आएंगे ? उनकी पार्टी के लोग एक-दूसरे पर खुले-आम हमले बोलते रहे हैं। और फिर चुनाव हुए तो सीटों के बंटवारे को लेकर ये आपस में भिड़ सकते हैं।
बड़ा सवाल यह है कि इमरान शासन के अधूरे कामों और नई समस्याओं को यह गठबंधन सरकार कैसे हल कर पाएगी। क्या श्रेय लूटने की कामना इनमें दंगल नहीं करवा देगी ? यह भी हो सकता है कि इमरान और उनके साथियों को यह नई सरकार जेल भिजवाने की कोशिश कर डाले। ऐसे में शाहबाज हमारे चौधरी चरणसिंह से सबक ले लें, जिन्होंने इंदिरा गांधी को जेल भिजवाया था तो जनता ने उनको घर बिठा दिया था।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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