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शिक्षा हो सब जन सुलभ

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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संविधान शिक्षा प्रजा,मिला मूल अधिकार।
आलोकित शिक्षा मनुज,न्याय त्याग आचार॥

शिक्षा मिले समाज में,संस्कार परिवार।
छल कपटी सत्तापरक,राजनीति गद्दार॥

धर्म जाति शिक्षा निहित,लोकतंत्र है आज।
रोजगार भी जातिगत,बस नफ़रत आगाज़॥

दर-दर ठोकर खा रहे,शिक्षित उच्च सुपात्र।
आरक्षण की मार से,तरुणाहत है गात्र॥

लोकतंत्र हो तब सफल,मिटे जाति अरु धर्म।
सम्मानित शिक्षित गुणी,अभिनंदित हो कर्म॥

नारी जग शिक्षा अभय,हो समत्व उत्थान।
मातृशक्ति सबला बने,तभी मनुज सम्मान॥

सार्वभौम भारत सदा,हो शिक्षा चहुँ ओर।
युवा शक्ति पुरुषार्थ से,अरुणिम शुभ नवभोर॥

हो जीवन सुखसार जग,उन्नति हो जन आम।
शिक्षा हो सब जन सुलभ,परहित भाव मुकाम॥

बसती भारत गाँव में,खेत कृषक खलिहान।
गीत-प्रीत शिक्षा कला,पंचायत अवदान॥

हो विकास चहुॅंमुख मनुज,शिक्षित हो समाज।
सुविधा संसाधन मिले,मिले बीज अनाज॥

बनें सेतु जग शान्ति का,समरसता बन्धुत्व।
हो शिक्षा सापेक्ष जग,बचे मनुज अस्तित्व॥

शिक्षा हो सर्वजन सुलभ,ज्ञानी हो सम्मान।
गुरुता हो आचार में,शास्त्रनिपुण विद्वान॥

सदाचार शिक्षण मिले,शिक्षा नैतिक ज्ञान।
मानवीय मूल्यक सदा,मिले कीर्ति सम्मान॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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