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शुचिता की परिभाषा

ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
मुंबई(महाराष्ट्र)
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आओ गीत सुनाऊँ तुमको, ‘शुचिता की परिभाषा’ का,
मनभावों में पलता है उस,जीवन की अभिलाषा का।
इन नयनों में नेह-स्नेह की,बहती निर्मल धारा हो,
दीन-दु:खी की पीड़ा का भी,सच्चा दर्द हमारा हो।
दया धर्म का भाव हमारे,जीवन का आधार रहे,
खुशियों से परिपूरित अपना,सारा ही संसार रहे।
हर भूखे को रोटी हो फिर,हर प्यासे को पानी हो,
तन पर कपड़े सर पर छप्पर,खेतों का रंग धानी हो।
स्वास्थ्य सुरक्षा भाईचारा,खुशियों का पैमाना हो,
शिक्षा के संग संस्कार का,मतलब हमने जाना हो।
बहन-बेटियों के रक्षण का,हम संकल्प उठाएं तो,
सीमा पर डटे जवानों को भी,अपना शीश झुकाएं तो।
हर किसान के अधरों पर,मुस्कान दिखाई देती हो,
बड़े-बुजुर्गों के आदर की,तान सुनाई देती हो।
दलित पतित निबलों विकलों की,सेवा ही अरमान रहे,
सत्य समर्पण त्याग दया ही,अपने तो भगवान रहे।
मंदिर मस्जिद गुरुद्वारों में,नेह-स्नेह की बोली हो,
अपनों और परायों के संग,प्रीत-प्यार की होली हो।
इन भावों का कर्मों से जब,साथ निभाया जाता है।
सच कहता हूँ ‘शुचिता’ का तब,अर्थ समझ में आता है॥

परिचय-ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है।आप लगभग सभी विधाओं (गीत, ग़ज़ल, दोहा, चौपाई, छंद आदि) में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।आप वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं ,पर बैंगलोर  में भी  निवास है। आप संस्कार,परम्परा और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश-धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। आपका मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य है,परन्तु लगभग ७० वर्ष पूर्व परिवार उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १ जुलाई को १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम.भी वहीं हुई है। आप ४० वर्ष से सतत लिख रहे हैं।काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं आपने लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर आप कई बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं। आप आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं। कर्नाटक राज्य के बैंगलोर निवासी श्री  अग्रवाल की रचनाएं प्रायः पत्र-पत्रिकाओं और काव्य पुस्तकों में  प्रकाशित होती रहती हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जनचेतना है।  

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