संजीव एस. आहिरे
नाशिक (महाराष्ट्र)
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आजकल मौसम का कोई ठिकाना नहीं रहा है। कब, कौन-सा मौसम शुरू हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। अब यहीं देख लो न, मई के बीचों-बीच भारी वर्षा हो रही है। एक ही दिन में तीनों मौसम और छह ऋतुओं के दर्शन हो रहे हैं, और क्या लोगे भाई साहब…। होंगे भी क्यों नहीं, आखिर हम आदमी लोग दिन-रात पर्यावरण का कल्याण करने में जो लगे हुए हैं।
आज भली सुबह हुई बारिश के कारण दीनदयाल उपाध्याय उद्यान से चलकर प्रतिदिन के योगाभ्यास के लिए हम पास स्थित साईं मंदिर के प्रांगण वाले पांडाल तले आकर योगाभ्यास करने लगे। वह एक विशाल पांडाल था, आस-पास फैली हरियाली, सघन विशाल वटवृक्ष और बारिश से भीगा माहौल बड़ा ही मनोरम लग रहा था। योगाभ्यास के लिए हम चटाई बिछाने लगे, तब हमने देखा २ श्वान, जिसमें एक काला, तो दूसरा या दूसरी भूरे वर्ण का सफेद-सा था, दोनों पांडाल के फर्श पर विश्राम कर रहे थे। उनकी शकल देखते हुए लग रहा था कि शायद वे ‘लव इन रिलेशनशिप’ में एक-दूसरे के साथ रह रहे थे। हम सबको वहाँ पाकर उन्होंने अजीब-सा मुँह बनाया। हमारा आक्रमण देखकर मजबूरन मन ही मन हमको कोसते हुए वे वहाँ से हट रहे थे। हम चटाई बिछाने लगे, तब पहले तो उन्होंने अजीब नजरों से हमें घूरकर देखा और सकपकाते हुए वहाँ से हटकर पीछे जाकर बैठ गए। जैसे ही हम लोग आसन करने लगे, श्वान बहुत आश्चर्यकारक निगाह से हमें देख रहे थे। शायद उनको लग रहा होगा, कि ये सभी सर्कस वाले प्राणी हैं और जबरन हमारी जगह घेरकर अपना सर्कस कर रहे हैं। अपने आराम की जगह छिन जाने के कारण वे अपमानित सा महसूस कर रहे थे और आपस में कुछ कुछ बतिया रहे थे।
थोड़ी देर बाद हमारे भिन्न-भिन्न आसन के अंग-विक्षेप देखते हुए उन्हें बड़ा मजा आने लगा था और वे मस्ती के अंदाज में आकर एक- दूसरे की खींचा-तानी, काना-फूसी और गटर-मस्ती करने लगे थे।
हमारा सर्कस देखते हुए थोड़ी देर में उनको अंदाजा हो गया कि ये कोई उपद्रवी प्राणी नहीं हैं और हमको इनसे कोई खतरा नहीं है। इसलिए आपस में मस्ती करते हुए वे हमारा मजा लेने पर उतारू हो गए। अचानक वे हमारे आसपास चक्कर काटते, एकदम से भागने लगते और आपस में प्यार जताते।
अब हम शिथिलासन तक पहुँच चुके थे। जैसे ही दायीं और शिथिलासन के लिए हम लेटे, उनमें से काला श्वान लपककर मेरे पास आया और “ये तो गया समझकर” मेरा आसन दाँतों से पकड़कर खींचने लगा। अचानक मैंने पाया कि ये आसन खिसक क्यूँ रहा है ? मामला समझ ही रहा था कि मेरे पड़ोस वाले योगी भाई ने उसे जोरदार डाँट लगाई-“हट…!” तो श्वान आसन छोड़कर जोर से भागा। भागते हुए दोनों हमारा चक्कर काटने लगे। मैंने मन ही मन सोंचा, अच्छा हुआ जो श्वान ने शिथिलासन में खींचा। यही अगर श्वासन में होता तो मेरा तो पूरा क्रियाकर्म निपटाने का सोंचकर पता नहीं कहाँ ले जाता मुझे घसीटकर ?
वापस स्थिति सामान्य करते हुए योगा शिक्षक दूसरे आसन के लिए सूचित कर ही रहे थे कि दोनों ने मस्ती करते हुए आपस में जोर- जोर से भौंकना शुरू कर दिया। चौंककर हम लोग फिर उनको देखने लगे। हमने देखा कि उनकी अदाकारी बड़ी अजीब थी। वे कभी मस्ती करते, कभी विचित्र निगाहों से हमको घूरते, फिर पलटकर चक्कर काटने लगते। उनके चेहरे पर अजीब से भाव थे। गौर से देखने पर लग रहा था कि पिछले जनम में वे या तो किसी सर्कस में रहे होंगे या वामपंथी विचारधारा के आदमी रहे होंगे। उनकी हरकतें देखकर दूसरे एक योगी भाई ने उन्हें दो-चार बार ललकारा और भगाया भी।
इधर, हमारे योग शिक्षक स्थिति को सामान्य बनाने की भरसक कोशिश में लगते हुए जैसे-तैसे चंद्रभेदी प्राणायाम तक पहुँचे ही थे कि श्वानों ने मौका देखकर थैलियों के ढेर से १ थैली उठाई और दाँत में पकड़ते हुए जोर-जोर से भागने लगे। चंद्रभेदी प्राणायाम से बाहर आकर जैसे ही हमने आँख खोली, तो, चंद्र तो दूर लेकिन अनगिनत जुगुनू हमारी आँखों के सामने तैरने लगे थे। जब मामला हमारी समझ में आया, तब हमने समझा कि वो हमारे एक भाई साहब की थैली उठाकर भाग रहे थे। आखिर भाई साहब उनका पीछा करते हुए लपके और बडी मुश्किल से बहुत देर तक पीछा करते हुए थैली वापस लाए।
संजोग से उन भाई साहब का सरनेम ‘वाघ’ था और एक वाघ मामूली श्वान के पीछे ऐसे भाग रहा था, जैसे श्वान ने उसका शिकार छीन लिया हो। मामला बहुत संगीन था, लेकिन वाघ और श्वान की दौड़ देखकर सबकी हँसी रोके नहीं रूक रही थी। आज मंदिर में आरती के कारण रोजाना की हँसी टाल दी गई थी, लेकिन इन श्वान भाइयों ने हम सबको खिल-खिलाकर और हँसा-हँसाकर लोट-पोट कर दिया। आज की रोकी गई हँसी आखिर इस प्रकार घटित हो ही गई। हँसी-हँसी के बीच प्रार्थना हुई। धरती माँ को वंदन करते हुए हँसते-हँसते सब विदा हुए।
परिचय-संजीव शंकरराव आहिरे का जन्म १५ फरवरी (१९६७) को मांजरे तहसील (मालेगांव, जिला-नाशिक) में हुआ है। महाराष्ट्र राज्य के नाशिक के गोपाल नगर में आपका वर्तमान और स्थाई बसेरा है। हिंदी, मराठी, अंग्रेजी व अहिराणी भाषा जानते हुए एम.एस-सी. (रसायनशास्त्र) एवं एम.बी.ए. (मानव संसाधन) तक शिक्षित हैं। कार्यक्षेत्र में जनसंपर्क अधिकारी (नाशिक) होकर सामाजिक गतिविधि में सिद्धी विनायक मानव कल्याण मिशन में मार्गदर्शक, संस्कार भारती में सदस्य, कुटुंब प्रबोधन गतिविधि में सक्रिय भूमिका निभाने के साथ विविध विषयों पर सामाजिक व्याख्यान भी देते हैं। इनकी लेखन विधा-हिंदी और मराठी में कविता, गीत व लेख है। विभिन्न रचनाओं का समाचार पत्रों में प्रकाशन होने के साथ ही ‘वनिताओं की फरियादें’ (हिंदी पर्यावरण काव्य संग्रह), ‘सांजवात’ (मराठी काव्य संग्रह), पंचवटी के राम’ (गद्य-पद्य पुस्तक), ‘हृदयांजली ही गोदेसाठी’ (काव्य संग्रह) तथा ‘पल्लवित हुए अरमान’ (काव्य संग्रह) भी आपके नाम हैं। संजीव आहिरे को प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अभा निबंध स्पर्धा में प्रथम और द्वितीय पुरस्कार, ‘सांजवात’ हेतु राज्य स्तरीय पुरुषोत्तम पुरस्कार, राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार (पर्यावरण मंत्रालय, भारत सरकार), राष्ट्रीय छत्रपति संभाजी साहित्य गौरव पुरस्कार (मराठी साहित्य परिषद), राष्ट्रीय शब्द सम्मान पुरस्कार (केंद्रीय सचिवालय हिंदी साहित्य परिषद), केमिकल रत्न पुरस्कार (औद्योगिक क्षेत्र) व श्रेष्ठ रचनाकार पुरस्कार (राजश्री साहित्य अकादमी) मिले हैं। आपकी विशेष उपलब्धि राष्ट्रीय मेदिनी पुरस्कार, केंद्र सरकार द्वारा विशेष सम्मान, ‘राम दर्शन’ (हिंदी महाकाव्य प्रस्तुति) के लिए महाराष्ट्र सरकार (पर्यटन मंत्रालय) द्वारा विशेष सम्मान तथा रेडियो (तरंग सांगली) पर ‘रामदर्शन’ प्रसारित होना है। प्रकृति के प्रति समाज व नयी पीढ़ी का आत्मीय भाव जगाना, पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु लेखन-व्याख्यानों से जागृति लाना, भारतीय नदियों से जनमानस का भाव पुनर्स्थापित करना, राष्ट्रीयता की मुख्य धारा बनाना और ‘रामदर्शन’ से परिवार एवं समाज को रिश्तों के प्रति जागरूक बनाना इनकी लेखनी का उद्देश्य है। पसंदीदा हिंदी लेखक प्रेमचंद जी, धर्मवीर भारती हैं तो प्रेरणापुंज स्वप्रेरणा है। श्री आहिरे का जीवन लक्ष्य हिंदी साहित्यकार के रूप में स्थापित होना, ‘रामदर्शन’ का जीवनपर्यंत लेखन तथा शिवाजी महाराज पर हिंदी महाकाव्य का निर्माण करना है।