सुजीत जायसवाल ‘जीत’
कौशाम्बी-प्रयागराज (उत्तरप्रदेश)
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रक्षाबंधन विशेष…..
भाई-बहन के प्यार का पर्व जो,वो आया रक्षाबंधन,
बहनों की पद-रज माथ लगाऊं,करता मैं अभिनंदन
रिश्ता अटूट है हर भाई-बहन का,ज्यों दीपक व बाती,
आशीष दो मेरी प्यारी बहना,मेरे माथ लगा दो चंदन।
स्नेह,प्रेम,मिष्ठान,उमंग का,आया ये राखी त्योहार,
हर बहन को मिलता भाई से,कुछ ना कुछ उपहार
मैं क्या दूं बहना ख़ुश हो जाए,मैं सोचता यही बारम्बार,
हर जन्म में यही बहना मिले,मेरा सपना हो साकार।
बाल-काल की खटपट को याद कर,आये मुझे हँसाई,
भावुक हुआ बहन की शादी में,देखी जो विदा- विदाई
रक्षासूत्र से मेरी भरे कलाई,मुझको लगती है प्यारी,
बहन प्रेम से विमुख न होऊं,प्रभु देता हूँ करुण दुहाई।
राखी के पावन पर्व पर,बहनों की याद है आई,
ससुराल में हैं प्यारी बहना,आए मुझे आज रुलाई
बिन बहनों के मेरी सूनी कलाई,सूना है घर-आँगन,
भाई-बहन को जो ज़ुदा करे,नर कैसी यह रीति चलाई ?