जनभाषा में न्याय…
पटना (बिहार)।
इंद्रदेव प्रसाद अधिवक्ता-सह विधि पदाधिकारी (स्थाई सलाहकार संख्या २७ पटना उच्च न्यायालय) ने पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय (भारत) की अधिसूचना वर्ष २०१५ के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय (भारत) के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष १२ जुलाई २०२४ को शिकायत-पत्र दाखिल किया है। इसमेंआरोपों की जाँच की माँग की गई है।
दाखिल शिकायत पत्र के अनुसार उक्त नामित मुख्य न्यायाधीश निम्नांकित आरोपों के घेरे में है-
◾भारतीय संविधान के अनुच्छेद २१९ सहपाठित तीसरी अनुसूची का प्रारूप संख्या ८ में लोगों के बीच मुख्य न्यायमूर्ति पद की ली गई शपथ (२९ मार्च २०२३) को भंग कर देना।
◾हिंदी आवेदनों का अंग्रेज़ी अनुवाद उसके आवेदक से यह बोलकर मांगना कि, मेरे हाथ २०१९ (२) पीएलजेआर ८०९ (एफबी) से बंधे हुए हैं और अंग्रेजी अनुवाद दाखिल होने पर यह बोलकर हिंदी में बहस करने से रोक देना कि, मुझे हिंदी समझ में नहीं आती है।
◾क्रिडब्लूजेसी संख्या ४३५/ २०१५ कृष्ण यादव बनाम बिहार राज्य एवं अन्य में पारित माननीय पूर्ण पीठ का निर्णयादेश ३०/४/२०१९ का उपयोग भारत संघ की राजभाषा हिंदी के विकास को रोकने में करना एवं करवाना ।
◾क्रिडब्लूजेसी संख्या ४३५/२०१६ से उत्पन्न मंत्रिमंडल सचिवालय बिहार के स्वीकृत प्रस्ताव संख्या ३४ (२९/९/२३) से घृणा करना करना और हिंदी वर्गों एवं अंग्रेजी वर्गों के बीच घृणा, शत्रुता व वैमनस्यता फैलाना और राष्ट्रीय अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला व्याख्यान करना और संशोधित अधिसूचना जारी करने में अनावश्यक विलंब करने का खड्यंत्र रच देना।
◾सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२/२०१८ में दाखिल ‘वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई’ का आई ए संख्या-१/२०२४ को इस आधार पर खारिज करना कि, यह रिट याचिका सरकारी अधिवक्ता की बर्खास्तगी आदेश के विरुद्ध दाखिल है और गलती प्रमाणित होने पर महाधिवक्ता बिहार पी.के. शाही के झूठे एवं बेइमान तर्क को याचिकाकर्ता पर थोप देना।
◾सीडब्ल्यूजेसी संख्या १७५४२/२०१८ का निष्पादन पहले क्रिडब्लूजेसी संख्या ४३५/२०१५ में पारित पूर्ण पीठ का निर्णयादेश (३०/४/२०१९) एवं उससे उत्पन्न मंत्रिमंडल सचिवालय बिहार के स्वीकृत प्रस्ताव संख्या ३४ को विचार में लेकर करना और बाद में बाह्य कारणों से प्रेरित होकर उसे पुनः सुनवाई पर लाना और स्वयं अपने आदेश की अवहेलना करते हुए सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२/२०१८ एवं ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस-१/२०२४ को खारिज कर देना।
◾सीडब्लूजेसी संख्या १७५४२/२
०१८ एवं ओरिजिनल क्रिमिनल मिसलेनियस-१/२०२४ को यह लिख कर खारिज कर देना कि, याचिकाकर्ता को राज्य सरकार ने विधि पदाधिकारी के पद से हटा दिया है और याचिकाकर्ता ने बर्खास्तगी आदेश को चुनौती नहीं दी है, यह जानते हुए कि याचिकाकर्ता को राज्य सरकार ने विधि पदाधिकारी के पद से बर्खास्त नहीं किया है। भारत संघ की राजभाषा हिंदी के विकास को रोकने के लिए महाधिवक्ता कार्यालय (बिहार) में गुंडागर्दी हुई है।
शिकायत पत्र में प्रार्थना है कि, उक्त नामित मुख्य न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन के विरुद्ध लाए गए आरोपों की जाँच करने के लिए न्यायाधीशों की जांच समिति गठित की जाए, जो उच्चतम न्यायालय (भारत) के अधिसूचना वर्ष २०१५ के अंतर्गत स्वीकृत हो सकता है और शिकायत में दम-खम पाए जाने पर मुख्य न्यायमूर्ति (उच्चतम न्यायालय भारत) उनको दंड दे सकते हैं।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुम्बई)