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करते सिक्के शोर!

प्रियंका सौरभ
हिसार(हरियाणा)

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क़तर रहे हैं पंख वो,मेरे ही लो आज,
सीखे हमसे थे कभी,भरना जो परवाज़।

आखिर मंजिल से मिले,कठिन साँच की राह,
ज्यादा पल टिकती नहीं,झूठ गढ़ी अफवाह।

अब तक भँवरा गा रहा,जिसके मीठे राग,
वो तितली तो उड़ चली,कब की दूजे बाग।

वक्त-वक्त का खेल है,वक्त-वक्त की बात,
आज सभी वो मौन हैं,जिनसे था उत्पात।

जिनके सिर हैं पाप का,ब्याज समेत उधार,
बनकर साहूकार वो,करने चले सुधार।

नोट कहाँ कब बोलते,करते सिक्के शोर,
केवल औछे लोग ही,दिखलाते हैं जोर।

बौने खुद औकात का,रखते कहाँ ख्याल,
काँधे औरों के चढ़े,नभ से करें सवाल।

जीवन पथ पे जो मिले,सबका है आभार,
काँटे,धोखा,दर्द जो,मुझे दिए उपहार।

क्या पाया,क्या खो दिया,भूलो रे नादान,
किस्मत के इस केस में,चलते नहीं बयान।

वक्त न जाने कौन तू,वक्त बड़ा बलवान,
भेजे वन में राम को,हरिश्चंद्र श्मशान।

जब तक था रस बांटता,होते रहे निहाल,
खुदगर्जी थोड़ी हुई,मचने लगा बवाल॥

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