मुम्बई (महाराष्ट्र)।
हम बात करते हैं भाषा-संस्कृति की लेकिन,संस्कृति मंत्रालय भी राजभाषा नीति की धज्जियाँ उड़ाता है। आजादी का अमृत महोत्सव गुलामी की भाषा में मनाता है। न किसी को दिखता-समझता,न कोई समझाता है। भाषायी विकल्प सिर्फ नाम लिखने,फार्म भरने और निर्देश के माध्यम के लिए हैं।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन,मुंबई)