गोष्ठी…
इंदौर (मप्र)।
वामा साहित्य मंच गंगा तीर्थ के समान है और लेखिकाओं में सृजन की देवी है। संस्मरण स्मृतियों का उत्सव है। संस्मरण में सीमाएं होती है, जब वह इससे आगे बढ़ जाती है तो ललित निबंध बन जाते हैं। साइकिल हर एक के जीवन में महत्वपूर्ण वाहन है व उससे जुड़े दो चक्र दर्शन है। साइकिल में परिक्रमा व गति समाहित है। जिसे इस पर संतुलन बनाना आ गया, उसने जीवन में संतुलन बनाने का पड़ाव पार कर लिया।
वामा साहित्य मंच की मासिक साहित्य गोष्ठी में यह बात मुख्य अतिथि ललित निबंधकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने कही। गोष्ठी में
लेखिकाओं ने सुनाया कि साइकिल एक ऐसा वाहन है, जिससे सबकी बाल्यावस्था की अपनी-अपनी स्मृतियाँ जुड़ी होती है। साइकिल से जुड़े संस्मरणों को जीवन में भुलाना कठिन है। इन्हीं संस्मरणों से पूर्व गोष्ठी का प्रारंभ मधुर सरस्वती वंदना से विभा जैन (ओज्स) ने किया। अध्यक्ष ज्योति जैन ने मुख्य अतिथि सहित सभी सखियों का स्वागत शब्द पुष्पों से करते हुए स्वयं की साइकिल से जुड़ी यादों व चलाने के लाभों से अवगत करवाया।
लेखिकाओं द्वारा साइकिल से जुड़े संस्मरणों को सुनाने के क्रम में उषा गुप्ता ने बताया कि भाई को रिश्वत देकर साइकिल चलाना सिखाने के लिए मनाया, लेकिन मोटर साइकिल वाले ने टक्कर मारी। डरकर आँखें बंद कर ली, पर भाई ने संभाल लिया। खुशी से ताली बजाने के चक्कर में गिर गई, or साइकिल चलाने से ही तौबा कर ली। अर्चना मंडलोई ने किराए की साइकिल लेकर चलाना सीखा और स्कूल में सहेलियों के साथ को याद किया। नूपुर प्रणय वागळे ने साइकिल का दर्शन अपने जीवन से जोड़ कर दिखाया। अपने संस्मरण में साईकिल पर फिल्माए गीत भी गाए।
अमिता मराठे ने बताया कि २५० ₹ की साइकिल खरीदी। जिस सहेली को हृदय रोग था, उसे भी रोज साइकिल पर बैठाकर घर से कालेज ले जाती और छोड़ती थी। तनुजा चौबे ने जेब खर्च से बचाकर किराए से साइकिल चलाना सीखी। गिरी, पर समझ आया जिद से मिली आजादी थोड़ी दर्दनाक सही, पर मीठी होती है।
शालिनी बड़ोले (रेवा) ने सुनाया कि छोटी सुंदर साइकिल जिसका नाम सुनहले पंखों वाली चिड़िया रखा था, लेकिन वह कभी उनकी ना हो पाई। मृदुला शर्मा, दामिनी ठाकुर,
आशा मुंशी, प्रीति मकवाना एवं
विनीता शर्मा आदि ने भी संस्मरण सुनाए।
वामा की प्रचार प्रभारी सपना साहू ‘स्वप्निल’ ने बताया कि सभी के संस्मरण सुनकर प्रेम, सखाभाव, उत्साह, वात्सल्य, परवाह, गर्व जैसी कई भावनाओं का साक्षात्कार हुआ।
अतिथि स्वागत व स्मृति चिन्ह भेंट डॉ. रागिनी सिंह व शिरीन भावसार ने किया। संचालन डाॅ. गरिमा दुबे ने किया।
आभार सचिव स्मृति आदित्य ने माना।