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‘सकारात्मकता’ से ही स्वस्थ समाज का निर्माण

मुकेश कुमार मोदी
बीकानेर (राजस्थान)
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बातों और चर्चाओं का हमारे जीवन में बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। एक-दूसरे के समक्ष किसी विषय, घटना या व्यक्ति के सम्बन्ध में अपने अपने विचार रखना, भावनाएं व्यक्त करना, ये सब बातचीत का हिस्सा होती हैं। अनूमन जिन घटनाओं और व्यक्तियों की क्रिया-कलापों को हम पसन्द नहीं करते, अक्सर वे ही हमारी चर्चा का विषय होते हैं। हमारी बातचीत अक्सर उन लोगों के आसपास ही घूमती है। विश्लेषण किया जाए तो ऐसी बातें सत्यता और वास्तविकता से काफी परे होती हैं, जिन्हें अनेक प्रकार की काल्पनिक मसालेदार घटनाओं के मिश्रण द्वारा सुनने के लिए रोचक बनाकर ही कहा जाता है, लेकिन हम इस कड़वी सच्चाई से अनभिज्ञ हैं कि किसी की नापसन्द आने वाली आदतों और व्यवहारिकता के बारे में सोचने या चर्चा करने से हम अपने भीतर ऐसी नकारात्मक ऊर्जा एकत्रित करते हैं, जो हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा नष्ट कर मानसिक पर्यावरण को भी प्रदूषित करती है।
हममें से लगभग हर व्यक्ति ऐसी मसालेदार कहानी सुनने-सुनाने की आदत पाल चुका है, जिन्हें सुनने के बाद औरों को सुनाने की इच्छा प्रबल हो उठती है। ऐसी बातें हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए कितनी घातक हैं, शायद इस सच्चाई से भिज्ञ होते हुए भी इन्हें अपने मन में स्थान देने से या इन्हें समाज में फैलाने से हम स्वयं रोक नहीं पाते हैं।
जिस प्रकार धूम्रपान करने वाले व्यक्ति या शराब पीने वाले व्यक्ति को इनसे होने वाले शारीरिक क्षति का ज्ञान होते हुए भी वह इनका सेवन करने से स्वयं को इसलिए रोक नहीं पाता, क्योंकि वह उनका व्यसनी हो चुका है। इसी प्रकार सम्पूर्ण समाज ऐसी वाहियात बातें सुनने-सुनाने का नशेड़ी बन चुका है। ऐसी बातों को अपने मन में स्थान ना देने और उन्हें सामाजिक दायरे से बाहर रखने के लिए कोई प्रयास करता हुआ नजर नहीं आता।
विभिन्न प्रकार के काल्पनिक रंगों में रंगकर हम लोगों के बारे में नकारात्मक राय पेश करने के महारथी बन चुके हैं, किंतु ये काल्पनिक रंग कभी किसी व्यक्ति के वास्तविक व्यक्तित्व का रूप नहीं ले सकते। ऐसी नकारात्मक बातें ना केवल दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बिगाड़ती है, बल्कि हमारी नैतिक विश्वसनीयता को भी संदेहास्पद बनाती है।
यदि हम किसी व्यक्ति विशेष के बारे में कुछ कहना ही चाहते हैं तो एक-दूसरे से उसकी विशेषताएं, गुण और अच्छाइयां भी साझा कर सकते हैं, किन्तु नकारात्मक चर्चाओं का नशीला मीठा जहर हमारे मन के लिए ऐसा भोजन बन गया है जिसे खाए बिना और खिलाए बिना बेचैनी-सी होने लगती है।
नैतिक सिद्धान्तों के दृष्टिकोण से किसी व्यक्ति के निजी-सामाजिक जीवन, उसकी आदतों और व्यवहारिकता के विषय में नकारात्मक दृष्टिकोण से चर्चा करना पूर्णतः वर्जित है, लेकिन हम स्वयं को सामाजिक रूप से जागरूक दिखाने के लिए ऐसी दूषित चर्चाओं से होने वाली क्षति का अनुमान लगाए बिना इस तुच्छ आदत को अपना लेते हैं। हमें स्वयं से पूछना चाहिए कि क्या नकारात्मक आलोचना या किसी की प्रतिष्ठा को धूमिल करने से हमारी स्वयं की छवि स्वच्छ बन सकती है ? इसका उत्तर हम सभी जानते हैं।
किसी की बुराई करने या छवि बिगाड़ने की आदत एक प्रकार का अतिघातक मानसिक रोग है, जिसका उपचार यदि हमने नहीं किया तो सम्पूर्ण समाज को हम पतन की गहरी खाई में धकेलने के निमित्त बन जाएंगे।
इस आदत को बदलने के लिए हमें स्वयं को कुछ आत्मसुझाव देने होंगे। अपने-आपको बार-बार यह याद दिलाएं कि मुझे सभी की भावनाओं और निजता की परवाह है। अपने- आपसे प्रण करें कि मैं किसी की आदतों और क्रिया-कलापों पर अपनी नकारात्मक टिप्पणी कभी नहीं करूंगा। अपने-आपको दूसरों की अच्छाईयों के बारे में सोचने और बोलने के लिए सहज रूप से तैयार करें। अपने आत्मबल और इच्छा शक्ति को बढ़ाकर पर-चिन्तन और अशुद्ध चिन्तन पर पूर्ण रूप से अंकुश लगाएं। आसपास होने वाली फालतू और निरर्थक बातों से परे रहकर अपनी ऊर्जा को बचाएं। थोड़े-थोड़े अन्तराल के बाद अपने अन्तर्मन में दोहराएं कि मैं एक शक्तिशाली प्राणी हूँ, मैं केवल लोगों की अच्छाई पर ध्यान केन्द्रित करता हूँ और उनके बारे में केवल सकारात्मक बातें ही करता हूँ। अपने मन में केवल स्वच्छ विचार ही जागृत करें और दूसरों के बारे में केवल सकारात्मक और प्रसंशात्मक शब्दों का ही चयन करें। अपने मानसिक पर्यावरण की रक्षा स्वयं करें। अपना प्रत्येक विचार, भाव और शब्द दूसरों के लिए हितकारी, उपकारी और कल्याणकारी बनाएं।
यह सकारात्मक प्रयास हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा का विकास करेगा, जिससे वातावरण में फैले मानसिक प्रदूषण का उन्मूलन होगा और स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक आपसी स्नेह और विश्वास की आधारशिला मजबूत होगी।

परिचय – मुकेश कुमार मोदी का स्थाई निवास बीकानेर में है। १६ दिसम्बर १९७३ को संगरिया (राजस्थान)में जन्मे मुकेश मोदी को हिंदी व अंग्रेजी भाषा क़ा ज्ञान है। कला के राज्य राजस्थान के वासी श्री मोदी की पूर्ण शिक्षा स्नातक(वाणिज्य) है। आप सत्र न्यायालय में प्रस्तुतकार के पद पर कार्यरत होकर कविता लेखन से अपनी भावना अभिव्यक्त करते हैं। इनकी विशेष उपलब्धि-शब्दांचल राजस्थान की आभासी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त करना है। वेबसाइट पर १०० से अधिक कविताएं प्रदर्शित होने पर सम्मान भी मिला है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज में नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करना है। ब्रह्मकुमारीज से प्राप्त आध्यात्मिक शिक्षा आपकी प्रेरणा है, जबकि विशेषज्ञता-हिन्दी टंकण करना है। आपका जीवन लक्ष्य-समाज में आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों की जागृति लाना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-‘हिन्दी एक अतुलनीय, सुमधुर, भावपूर्ण, आध्यात्मिक, सरल और सभ्य भाषा है।’

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