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सब दिन होत न एक समान

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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मनुज न कर इतना अभिमान,
सब दिन होत न एक समान।

अभिषेक की ये घड़ी टल गयी,
रावण की भी लंका जल गयी।
यही तो है विधि का विधान,
सब दिन होता न एक समान…॥

इस जीवन का यही है रूप,
कभी छाँव तो कभी है धूप।
क्यों होता है बन्दे तू परेशान,
सब दिन होत न एक समान…॥

रात अंधेरी दिन उजियारा,
क़ुदरत का करिश्मा सारा।
क्यों होता है मानव तू हैरान,
सब दिन होत न एक समान…॥

वो चाहे तो भीख मंगवा दे,
वो चाहे तो राज दिलवा दे।
क्यों बैठा बन कर अनजान,
सब दिन होत न एक समान…॥

मनुष्य का तुझे जन्म मिला,
गा शुक्राने तू कर ना गिला।
है ईश्वर का वरदान पहचान,
सब दिन होत न एक समान…॥

माया ने तेरा मन भरमाया,
होगी राख़ सुंदर तेरी काया।
छोड़ नादानी सच को जान,
सब दिन होत न एक समान…॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

 

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