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समकालीन परिदृश्य महोत्सव

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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७५ बरस की आजादी का अमृत और हम सपर्धा विशेष….

‘७५ बरस की आजादी का अमृत और हम’ में हमारे देश के नागरिक सब बदल गए हैं। हिंदुस्तानी से हिंदी तक,हिंदी से आगे चलकर अंग्रेजी के भरोसे आज तक। विज्ञान-वैज्ञानिक और रंग बदलते धार्मिक दौर से गुजर कर राजनीति के दलदल में ‘कर से कमल’ खिला बैठें हैं। प्रधानमंत्री से रामराज्य की अभिलाषा करते हुए सारे ओरोपों-प्रत्यारोपों की बौछार कर नागरिक दिनभर यातायात जाम किए रहते हैं। उनके शब्दों का पालन- ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ के बदले ‘न चलें हैं न चलने देंगे’ कह भविष्य बता रहे हैं।
यही सच्चा अर्जन है कि साहित्य लेखन में पच्चहत्तरवीं वर्षगांठ के अमृत उपलक्ष्य पर सब इतिहास पर निर्भर हो,इससे अधिक लिख ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे ही अनगिनत सुख समृद्धि के बीच देश भक्त धर्म का पालन कर्तव्यनिष्ठा से किए जा रहे हैं।
‘देश का हर नागरिक कर्तव्यनिष्ठ हों,
राज से लेकर धर्म तक सब शिष्ट हों,
आचरण में शुद्धिकरण की हो प्रविष्टि,
तन-मन सेवा से नवयुवक बलिष्ठ हों॥’

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