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सरकारी भिखारी

मानकदास मानिकपुरी ‘ मानक छत्तीसगढ़िया’ 
महासमुंद(छत्तीसगढ़) 
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भिखारी कहूं कि लुटेरा या घूसखोर,
जादूगर कहूं कि खेलवाला या चोर।
सरकारी काम का भी अजीब ढंग से लेता है पैसा,
एक हस्ताक्षर भी ईमान से नहीं गरीबों की ओरll

कैसा कर्मचारी-कैसा अधिकारी,कैसा है इंसान,
शपथ-पत्र ईमानदारी का भरता भी है बेइमान।
कहता है-रिश्वत नहीं लूंगा कभी भी कसम से,
और बेझिझक निर्दयता से लूटता है शैतानll

कैसा चंडाल व्यक्ति है वह,किसने दी उसे शिक्षा,
अशिक्षित कमजोरों को फुसलाकर मांगता है भिक्षा।
नौकरी तो सरकारी है,फिर खर्चा-पानी किस हक़ से,
लगता है उसके गुरु ने ही उसे दी है ऐसी दीक्षाll

खेल दिखाता है कागज के ढेर से पन्ने पलटकर,
आम जनता दंग रह जाती है,नहीं समझती समझकर।
करता है गम्भीर इशारे मेज़ के नीचे से लिपटकर,
सरकारी भिखारी लेता है घूस,जानवर जैसी झपट करll

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