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सरकार की अच्छी पहल, पर कैसे होगी सफल ?

डॉ. एम.एल. गुप्ता ‘आदित्य’
मुम्बई(महाराष्ट्र)
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महात्मा गांधी का सपना…

इस विषय पर कोई विवाद नहीं कि मातृभाषा माध्यम से शिक्षा और राष्ट्रभाषा को लेकर जितना महात्मा गांधी ने कहा, लिखा और सार्थक प्रयास किए उतने शायद किसी और ने नहीं किए, लेकिन यह भी सच है कि उनके नाम और उनके माध्यम से सत्ता पाने वाले प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी पार्टी इस विषय पर हमेशा उनके विचारों के प्रतिकूल ही कार्य करती रही। स्वतंत्रता के समय ९९ फीसदी या उससे भी अधिक लोग मातृभाषा में ही पढ़ा करते थे, पर आगे चलकर जिस प्रकार की नीतियां अपनाई गई और व्यवस्था को आगे बढ़ाया गया, उसके चलते आज देश में नर्सरी कक्षा तक और गाँवों तक अंग्रेजी माध्यम पांव पसार चुका है।

नई शिक्षा नीति आयोग (अध्यक्ष पूर्व इसरो अध्यक्ष कस्तूरीरंगन जी) ने इस बात को भली-भांति समझा कि किसी व्यक्ति का विकास मातृभाषा के माध्यम से ही सही प्रकार हो सकता है। उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा को उचित महत्व भी दिया, लेकिन शासन-प्रशासन और राजनीति में अपनी पैठ बनाए हुए अंग्रेजी की बहुत ही ताकतवर मंडली हमेशा इसके विरोध में खड़ी होती रही है। डॉ. राम मनोहर लोहिया और उनके कथित समाजवादी चेले लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव जो हमेशा मातृभाषा और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रबल समर्थक होते थे, आज इनके दल भी भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। गांधी जी राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रबल समर्थक थे लेकिन आज हिंदी की बात आते ही खुद को गांधी जी की पार्टी बताने वाली कांग्रेस के नेता हिंदी के विरोध में हंगामा करने लगते हैं। दक्षिण के कांग्रेसी नेता मुखर विरोध करते हैं और उत्तर के कांग्रेसी नेता उस विरोध का मौन समर्थन करते दिखते हैं। कोई हिंदी के पक्ष में मुँह नहीं खोलता।
१९८६ की शिक्षा नीति के पश्चात जिस प्रकार देश में घर-घर में अंग्रेजी माध्यम की बाढ़ आई और फिर ज्ञान आयोग के जरिए सैम पित्रोदा ने अंग्रेजी को ज्ञान का पर्याय बनाया एवं उसके जरिए घर-घर में अंग्रेजी के समर्थकों की बड़ी सेना पैदा हुई। इसके बाद भाजपा जैसे दल जो परंपरागत रूप से हमेशा से राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी और मातृभाषा-माध्यम के समर्थक रहे, वे भी अब कोई जोखिम लेना नहीं चाहते। नई शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा माध्यम की बात तो की गई है, लेकिन उसमें अनिवार्यता शब्द न होने से यह टांय-टांय फिस्स होने वाली बात ही लगती है। हालांकि, भाजपा शासित राज्यों में भी प्राथमिक स्तर पर भी तेजी से अंग्रेजी माध्यम के पांव पसारने से सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगते हैं।
भारतीय भाषाओं के समर्थक और मातृभाषा के माध्यम से मौलिक चिंतन और विद्यार्थियों की सर्वांगीण विकास के लिए खड़े होने वालों के प्रयासों और भाजपा में भारतीयता समर्थकों की प्रबल मांग के चलते सरकार अब विभिन्न भारतीय भाषाओं में अभियांत्रिकी और चिकित्सा जैसी उच्च शिक्षा देने का मार्ग प्रशस्त कर रही है, ताकि देश की करोड़ों प्रतिभाओं को अंग्रेजी आगे बढ़ने से न रोक सके। निश्चय ही यह बड़ा और सराहनीय कार्य है, लेकिन जब तक प्राथमिक स्तर पर भी मातृभाषा माध्यम पूरी तरह लागू न हो सके तो उच्च स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देना कितना व्यावहारिक होगा, यह भी एक बड़ा प्रश्न है ?
यहां भी कुछ बड़े प्रश्न मुँह बाए खड़े हैं। पिछले ७५ वर्षों में संसाधनों की ढलान पूरी तरह अंग्रेजी की ओर बना दी गई है। अब शिक्षा ही नहीं, रोजगार के सारे मार्ग भी अंग्रेजी से होकर ही गुजरते हैं। ऐसे में प्रश्न यह खड़ा होता है कि यदि भारतीय-भाषा माध्यम प्रदान कर भी दिया गया तो भारतीय भाषा माध्यम से रोजगार की उपलब्धता न होने से कितने विद्यार्थी भारतीय भाषा माध्यम की तरफ आना चाहेंगे ? जो आ भी जाएंगे, उनके भविष्य का क्या होगा ? यदि मातृभाषा माध्यम से पढ़ कर आए विद्यार्थियों को रोजगार नहीं मिला तो यह प्रयोग कितनी दूर तक चल पाएगा ? इसलिए सरकार को मातृभाषा माध्यम से पढ़ कर आए विद्यार्थियों के रोजगार के लिए भी समुचित व्यवस्था करनी होगी। केवल सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि निजी संस्थानों को भी इस दिशा में प्रेरित और प्रोत्साहित करना होगा।
यदि एक बार मातृभाषा माध्यम से रोजगार मिलना शुरू होगा तो निश्चय ही मातृभाषा माध्यम की तरफ करोड़ों विद्यार्थी आकर्षित होंगे। उनकी प्रतिभा का विकास होगा। वे बेहतर अभियंता व चिकित्सक बन सकेंगे और जनभाषा के चलते जनता के निकट होंगे एवं निश्चित रूप से देश की बेहतर सेवा कर सकेंगे। यदि ऐसा हो पाया तो निश्चय ही गांधीजी का मातृभाषा माध्यम से देश के विकास का सपना साकार होगा, लेकिन यदि आधी-अधूरी इच्छाशक्ति से ऐसा किया गया तो इसका प्रभाव सकारात्मक से अधिक नकारात्मक होगा। यह स्थापित हो जाएगा कि भारतीय भाषाओं में मातृभाषा में शिक्षा देना संभव ही नहीं है। आगे के लिए हमेशा से इस दिशा में प्रयास पर पूर्ण विराम लग जाएगा। इसलिए इस दिशा में ठोस निर्णय लेते हुए कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
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