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सहस्त्र जिह्वा सर्पिणीं की जिह्वाएँ काटी जाए

विजयलक्ष्मी विभा 
इलाहाबाद(उत्तरप्रदेश)
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जीवन चलते रहने का नाम है, और चलते रहने के लिए खाद्य सामग्री, जल, वायु और वो तमाम उपकरण जो मनुष्य ने स्वयं अपनी सुख-सुविधाओं के लिए निर्मित कर रखे हैं, सबकी आवश्यकता निरन्तर बनी रहती है। मनुष्य का वर्ण व्यवस्था , जाति-पांति, धर्म-कर्म पद्धति और अमीरी-ग़रीबी के आधार पर अनेक श्रेणियों में विभाजन हो गया है ,जिससे जीवन पद्धति और कठिन होती जा रही है। अब इसे समान स्थिति में लाना दुष्कर कार्य है। मानव जीवन अपने स्वयं के बिछाए हुए जालों में इस तरह उलझ गया है कि एक गुत्थी को सुलझाते ही दूसरी उलझ कर सामने आ जाती है। यह किसी एक देश की बात नहीं है, अपितु सम्पूर्ण विश्व इसी त्रासदी से गुजर रहा है। प्रेम, नैतिकता, नि:स्वार्थ सेवा, बड़ों का सम्मान, भाईचारा एवं अन्य संवेदन शीलता पूर्ण सद्गुणों का स्थान नफरत, अनैतिकता, स्वार्थ, बड़ों का अपमान, भेदभाव एवं संवेदनहीनता ने ले लिया है। हमारे सामने चुनौतियों पर चुनौतियाँ और प्रश्नों पर प्रश्न खड़े हैं। रोज नए मुद्दे स्वयं अपनी वकालत-सी करते हुए सामने आ जाते हैं।
आज मंहगाई का प्रचंड रूप आम आदमी का जीवन दूभर बना रहा है, परन्तु मँहगाई पर चर्चा से पूर्व हमें एक न्यायपूर्ण सर्वे करना होगा और देखना होगा कि मँहगाई समाज के किस वर्ग को सर्वाधिक कष्ट दे रही है। यहां हम समाज के ३ वर्गों पर मँहगाई की मार का असर बिंदुवार देखकर सर्वे करेंगे ।
सर्वप्रथम हमारे सामने समाज का उच्च वर्ग है जिनमें बड़ी-बड़ी कम्पनियों के मालिक, फैक्टरी के मालिक, बड़े-बड़े व्यापारी, ऊँचे-ऊँचे ओहदों पर कार्यरत अधिकारी आदि हैं जिन पर मँहगाई का सकारात्मक प्रभाव होता है। जब मनुष्य के उपयोग की चीजें मंहगी होती हैं तो उन चीजों से सम्बंधित कम्पनियों अथवा व्यापारियों की बल्ले-बल्ले होती है। मँहगाई का धन इन सभी के पास जाकर संकलित हो जाता है। इन पर मार नहीं पड़ती, बल्कि फूल बरसते हैं।
दूसरे जमा खोर, माफिया, सूदखोर, काले धन वाले और कर चोर हैं, जिन पर मँहगाई का विशेष प्रभाव नहीं होता। इन्हें आम जनता से धन खींचना पड़ता है। ये संवेदनाहीन लोग साम-दाम-दंड-भेद चारों प्रकार से धन खींचते हैं। समाज के कमजोर वर्ग को सताने का कार्य इनका लक्ष्य होता है।
दूसरा समाज का मध्यम वर्ग है, जो चक्की के दोनों पाटों में पिसता है। इस वर्ग में समाज के नौकरी पेशा लोग, छोटे-छोटे ओहदों पर कार्य करने वाले क्लर्क, शिक्षक, चौकीदार, चपरासी, कम्पनियों में छोटे-छोटेे वेतनोंं पर काम करने वाले आदि होते हैं। मँहगाई का खामियाजा सर्वाधिक इनको ही झेलना पड़ता है। कभी-कभी तो मध्यम वर्ग के लोग मँहगाई से तंग आकर खुदकुशी तक को मजबूर हो जाते हैं। एक छोटा-सा परिवार जिसमें माता-पिता और २ बच्चे होते हैं, उनके घर में भी एक जून की रोटी दुर्लभ हो जाती है, क्योंकि यहां मँहगाई का विकराल रूप देखने को मिलता है।
मँहगाई अपने एक रूप में नहीं बढ़ती, समुद्र की लहरों की तरह पूरी अर्थ व्यवस्था को हिला कर रख देती है। यदि पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं तो पूरे बाजार में प्रत्येक उपकरण के दाम दोगुने हो जाते हैं। नमक, मिर्च से लेकर इलैक्ट्रिक वस्तुओं तक सभी के आसमान छूने लगते हैं। मध्यम वर्ग के लिए रोजमर्रा की वस्तुएँ खरीदना भी भारी पड़ने लगता है। जिस परिवार में ४ सदस्य हैं, उनके लिए कम से कम आधा किलो सब्जी एक जून और आधा किलो दूसरे जून होना आवश्यक है और यह एक किलो सब्जी १२० रुपए की होती है जो मध्यम वर्ग के लिए प्रतिदिन खरीद पाना मुश्किल होता है। फिर दाल, चावल, आटा, चाय, दूध आदि सब मिला कर उनका छोटा-सा वेतन केवल पेट भरने के लिए भी पर्याप्त नहीं होता है। घर में कोई सदस्य बीमार पड़ता है तो मध्यम परिवार कर्जदार होने लगता है। मुफ्त इलाज की योजनाएँ बहुत हैं, परन्तु सेवाएँ और सुविधाएँ नाम मात्र की हैं ।
तीसरा समाज का निम्न वर्ग है जो शारीरिक श्रम से जीविका उपार्जन करता है। ये जितना श्रम करते हैं उतनी आमद होती है। इनमें मजदूर, रिक्शा चालक, उच्च वर्ग के लोगों के घरों में काम करने वाले एवं सफाई और चौकीदारी करने वाले सरकारी कर्मी आते हैं जिन्हें मँहगाई की मार सहनी पड़ती है।
अब प्रश्न उठता है कि मँहगाई की रफ्तार पर सदैव अंकुश रखा जाए या सभी को मँहगाई भत्ता दिया जाए। नौकरीपेशा लोग मंहगाई भत्ते की मांग करने लगते हैं और जो नौकरी में नहीं हैं, वो क्या करें। अनेक प्रकार की विसंगतियां सरकारों के सामने आती हैं। अर्थ व्यवस्था के ये ज्वलंत प्रश्न कभी सही मायने में हल नहीं हो पाते।
सरकार को बाज़ार पर अंकुश लगाना चाहिए। यदि एक वस्तु की कीमत बढ़ती है तो वह एक ही वस्तु तक सीमित रहे। पूरा बाजार मंहगाई की चपेट में न आए, इसकी व्यवस्था होनी चाहिए। इससे काला बाजारी और जमाखोरी पर भी अंकुश लगेगा। मँहगाई भत्ते के रूप में सरकार जो राशि कर्मचारियों को वेतन के आधार पर देती है, उसे देश के विकास, अथवा देश की प्रगति के नाम पर समान रूप से सभी को दिया जा सकता है। यद्यपि, यह समान वितरण अत्यन्त कठिन है और इस पर सभी एकमत होंगे, सम्भव नहीं है। फिर भी इसको संशोधित और परिमार्जित कर सर्वसम्मति से कार्यान्वित किया जा सकता है।
मँहगाई रूपी सहस्त्र जिह्वा सर्पिणीं की जिह्वाएँ काटना ही बेहतर विकल्प दिखाई पड़ रहा है। बाज़ारों को सामान्य गति से चलने दिया जाए, न कि उछल-कूद वाली गति से चलें, तभी मँहगाई की भी उछल-कूद सामान्य गति में परिवर्तित होगी और आम आदमी का जीवन सहज व सरल हो सकेगा।

परिचय-विजयलक्ष्मी खरे की जन्म तारीख २५ अगस्त १९४६ है।आपका नाता मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से है। वर्तमान में निवास इलाहाबाद स्थित चकिया में है। एम.ए.(हिन्दी,अंग्रेजी,पुरातत्व) सहित बी.एड.भी आपने किया है। आप शिक्षा विभाग में प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हैं। समाज सेवा के निमित्त परिवार एवं बाल कल्याण परियोजना (अजयगढ) में अध्यक्ष पद पर कार्यरत तथा जनपद पंचायत के समाज कल्याण विभाग की सक्रिय सदस्य रही हैं। उपनाम विभा है। लेखन में कविता, गीत, गजल, कहानी, लेख, उपन्यास,परिचर्चाएं एवं सभी प्रकार का सामयिक लेखन करती हैं।आपकी प्रकाशित पुस्तकों में-विजय गीतिका,बूंद-बूंद मन अंखिया पानी-पानी (बहुचर्चित आध्यात्मिक पदों की)और जग में मेरे होने पर(कविता संग्रह)है। ऐसे ही अप्रकाशित में-विहग स्वन,चिंतन,तरंग तथा सीता के मूक प्रश्न सहित करीब १६ हैं। बात सम्मान की करें तो १९९१ में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.शंकर दयाल शर्मा द्वारा ‘साहित्य श्री’ सम्मान,१९९२ में हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा सम्मान,साहित्य सुरभि सम्मान,१९८४ में सारस्वत सम्मान सहित २००३ में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल की जन्मतिथि पर सम्मान पत्र,२००४ में सारस्वत सम्मान और २०१२ में साहित्य सौरभ मानद उपाधि आदि शामिल हैं। इसी प्रकार पुरस्कार में काव्यकृति ‘जग में मेरे होने पर’ प्रथम पुरस्कार,भारत एक्सीलेंस अवार्ड एवं निबन्ध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त है। श्रीमती खरे लेखन क्षेत्र में कई संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। देश के विभिन्न नगरों-महानगरों में कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी काव्य पाठ करती हैं। विशेष में बारह वर्ष की अवस्था में रूसी भाई-बहनों के नाम दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कविता में इक पत्र लिखा था,जो मास्को से प्रकाशित अखबार में रूसी भाषा में अनुवादित कर प्रकाशित की गई थी। इसके प्रति उत्तर में दस हजार रूसी भाई-बहनों के पत्र, चित्र,उपहार और पुस्तकें प्राप्त हुई। विशेष उपलब्धि में आपके खाते में आध्यत्मिक पुस्तक ‘अंखिया पानी-पानी’ पर शोध कार्य होना है। ऐसे ही छात्रा नलिनी शर्मा ने डॉ. पद्मा सिंह के निर्देशन में विजयलक्ष्मी ‘विभा’ की इस पुस्तक के ‘प्रेम और दर्शन’ विषय पर एम.फिल किया है। आपने कुछ किताबों में सम्पादन का सहयोग भी किया है। आपकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर भी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है।

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