पटना (बिहार)।
साहित्य की पद्य विधा में गीत और ग़ज़ल सर्वाधिक पठनीय और चर्चित विधा रही है। इन विधाओं पर सार्थक सृजन करने के लिए सतत श्रेष्ठ साहित्य का अध्ययन और अभ्यास ही एकमात्र विकल्प है। कवि बनने के लिए डिग्री की जरूरत नहीं, श्रेष्ठ कवियों की श्रेष्ठ कविताओं का अध्ययन और लेखन के प्रति आपकी रुचि की जरूरत है।
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी रूप से आयोजित कविता पाठशाला में संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए। इस कविता सप्ताह के प्रभारी एकलव्य केसरी ने प्रत्येक कविता पर टिप्पणी दी। प्रख्यात शायर विज्ञान व्रत ने भी इस कविता पाठशाला में सहभागिता निभाते हुए कहा कि, सीखने का सिलसिला लेखक के लिए जीवनभर चलता रहता है। जिस दिन हम समझ गए कि, हम पूर्ण हैं, उसी दिन हमारे सृजन की मृत्यु हो जाती है। आधुनिक युग की चित्तवृत्ति से संवेदित होकर कविता लिखनी चाहिए, तभी रचना प्रासंगिक होगी।
कवयित्री अंजू दास ने कहा कि, कोई परिपक्वता का चोला ओढ़कर तो आया है नहीं, इसलिए हमें सीखने और सिखलाने की प्रवृत्ति जारी रखनी चाहिए। एकलव्य केसरी ने कहा कि, मीरा सिंह ‘मीरा’ की ग़ज़ल किसी भी पाठक के अंतर में उतरने का माद्दा रखती है। नरेश कुमार, बिहारी लाल प्रवीण, अरुण निशांक, आशा शैली, माधुरी जैन और डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हुए रचनाओं को प्रस्तुत किया।