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स्वतंत्रता की वेदी का अंगारा रहे महाराणा

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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‘महाराणा प्रताप और शौर्य’ स्पर्धा विशेष……….


बप्पा रावल,महाराणा कुम्भा,राणा सांगा जैसे महान सूरमाओं के राजवंश से थे महाराणा उदयसिंह। पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन को बलिदान कर दिया युवराज उदयसिंह को बचाने के लिए। इन्हीं शूरवीर राजा उदयसिंह के यहाँ ९ मई १५४० को महाराणा प्रताप का जन्म पाली जिले जालौर में हुआ। अखेराज सोनगरा की पुत्री जयवंत कंवर महाराणा प्रताप की माता थी। महाराणा प्रताप का बाल्यकाल चितौड़ में गुज़रा। १५६६ ईस्वी में मुग़ल सम्राट अक़बर ने चितौड़ पर आकमण कर दिया। महाराजा उदयसिंह को चितौड़ छोड़ना पड़ा। उस समय महाराणा प्रताप की आयु १७ वर्ष की थी। मुग़लों के प्रति घृणा के भाव जाग गए। अपनी मातृ भूमि पर प्राण न्यौछावर करने वाले योद्धाओं से न केवल सीख ली,ये घटना महाराणा प्रताप के जीवन का आधार बन गई। अपने पिता के साथ दुर्गम पहाड़ों पर रहने के बाद गोगुन्दा में पड़ाव क़ायम किया। २८ फ़रवरी १५७२ में महाराजा उदयसिंह का देहांत हो गया। महाराणा प्रताप की योग्यता व मातृभक्ति देख कर सरदारों ने उन्हें राजगद्दी पर आसीन किया। होली के शुभ पर्व पर गोगुन्दा में उनका विधिवत राजतिलक हुआ। उस समय तक मेवाड़ के सभी राज्यों ने अक़बर की अधीनता स्वीकार कर ली थी,एकमात्र महाराणा प्रताप ने अपना मष्तिस्क अक़बर के आगे नहीं झुकाया। अक़बर ने ४ बार संधि प्रस्ताव भेजा पर राणा ने अपनी स्वाधीनता व सार्वभौमिकता के अधिकार को सर्वोपरि मानते हुए हर बार इंकार कर दिया। महाराणा प्रताप अक़बर से लोहा लेने की तैयारी में जी-जान से जुट गया। १८ जून १५७६ में हल्दीघाटी और ख़मनोर के मध्य एक मैदान में ऐतिहासिक युद्ध हुआ,बाद में ये युद्ध `रक्त तलाई` के नाम से जाना गया। अक़बर की सेना का नेतृत्व जयपुर के राजा मानसिंह व प्रताप की सेना का नेतृत्व काबुल के पठान हाक़िम ख़ान सूर ने किया। प्रताप की तरफ से भीलू राणा के नेतृत्व में भीलों ने गोरिल्ला पद्धति से युद्ध में खलबली मच दी। अचानक घटनाक्रम बदल गया,जब महाराणा प्रताप ने अपने घोड़े पर एड़ लगाकर राजा मानसिंह के हाथी के हौदे पर चढ़ा दिया,राजा हौदे में दुबक कर बैठ गया,पर हौदे से उतरते समय चेतक की एक टांग कट गई। इस स्थिति को भांप कर महाराणा के हमशक़्ल सेनापति झालामान ने उनकी आज्ञा लेकर उनका राजमुकुट अपने सिर पर धारण कर लिया। मुग़ल सेना ने झालामान को अक़बर समझ कर घेर लिया और उन्हें युद्ध में वीरगति प्राप्त हुई। हल्दीघाटी का ये युद्ध मात्र ४ घण्टे चला। उधर,चेतक ने अपने स्वामी को ५ किलोमीटर तक ३ टांग पर ही एक बरसाती नाले को पार किया,उसके पश्चात चेतक ने प्राण त्याग दिए।इस घटना से प्रताप के मन को गहरा आघात लगा। परिणाम स्वरूप उन्होंने राजसी ठाठ-बाट छोड़ दिया। पत्तलों पर भोजन करने का प्रण लिया और जीवन भर निभाया। इस दौरान उन्हें बहुत-सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा,राणा के परिवार को घास की रोटियां खानी पड़ी,तभी एक कविता में कवि कहता है कि-`हर घास की रोटी वनबिलावड़ो ले भाग्यो,नन्हों से अमरा बिलख पड़ा`,ऐसी विकट स्थिति में भी राणा ने अपना आत्मसम्मान बनाए रखा। कहते हैं कि,जब वो बोलते थे तो उनकी वाणी सुनकर सैनिकों में आत्मबल आ जाता था। महाराणा प्रताप ने पुनः अपना सैन्यबल बढ़ा कर अरावली पर्वत की घाटियों में बसे दिवेर पर विजय प्राप्त कीl इसके पश्चात कुम्भलगढ़ पर अपनी जीत की पताका फहराई।चितौड़ को छोड़कर सारे मेवाड़ पर अपना आधिपत्य जमा लिया। चावण्ड में अपनी राजधानी स्थापित की। एक बार धनुष को झुकाते हुए राणा घायल हो गए और मात्र ५७ वर्ष की आयु में १९ जनवरी १५९७ ईस्वी में महाराणा प्रताप ने ये संसार को छोड़ दिया। हल्दीघाटी का युद्ध कोई साम्प्रदायिक युद्ध न होकर मातृभूमि की स्वाधीनता व स्वतंत्रता का युद्ध था। इसका प्रमाण ये है कि अक़बर की सेना का नेतृत्व एक हिन्दू राजा मानसिंह ने किया और महाराणा प्रताप की सेना का नेतृत्व काबुल के पठान हाक़िम ख़ान सूर ने किया। महाराणा प्रताप स्वतंत्रता की वेदी पर इस अंगारा है,जो आत्मसम्मान और देश के गौरव के लिए दिन-रात जलता रहा,धधकता रहा और अंत में बुझ कर भी उसने देश में ऐसा लोह भर दिया,जिसकी प्रखर किरणों ने भारत माता को ग़ुलामी की जंज़ीरों से मुक्त कराने के लिए सदा प्रेरित किया। महाराणा प्रताप को `मेवाड़ रत्न` के नाम से भी जाना जाता है।

परिचय-श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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