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साहित्य की भूमिका और हिंदी

रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..


हिंदी भाषा के विकास हेतु साहित्य की समृद्वि आवश्यक है,क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण है,तो जाहिर है कि जब से समाज का अस्तित्व इस दुनिया में है तभी से साहित्य का भी। डॉ. हरदेव बाहरी के अनुसार-“साहित्य की भूमिका प्राचीन वैदिक काल से चली आ रही है। अपभ्रंश अवस्था से ही हिंदी साहित्य का आविर्भाव माना जाता रहा है। सातवीं-आठवीं शताब्दी के पदों में इसकी झलक देखी जा सकती है।”
साहित्यिक दृष्टि से पद्यबद्ध रचनाएं दोहे के रूप में सर्वप्रथम दिखाई देती हैं। राजाओं की प्रशंसा कवि,चारन,नीति व श्रृंगार इसी विधा के माध्यम से प्रस्तुत करते थे,तो नानक,रहीम, तुलसी ने भी अपने दोहों के माध्यम से समाज को सुधारने का कार्य किया। आगे चलकर हिंदी साहित्यकार डॉ. नगेंद्र ने काल का विभाजन किया जो आदिकाल,भक्तिकाल ,रीतिकाल,आधुनिक काल रहा। इनमें भक्तिकाल साहित्य का स्वर्ण युग कहलाया, क्योंकि इस समय धार्मिक भावनाओं से प्रेरित विभिन्न मत वादी काव्य साधनाओं का जन्म हुआ और समाज को एक नई दिशा दी गई।
आधुनिक काल को भी प्राचीन युग द्विवेदी युग छायावादी युग आधुनिक युग के रूप में विभाजित किया गया। तत्पश्चात आधुनिक काल में कहानी रिपोतार्ज,संस्मरण,यात्रा वृतांत,एकांकी,उपन्यास जैसी विधाओं को बहुत ख्याति मिली और साहित्य आज अपनी इन्हीं सब विधाओं को समेटे अपने मुख्य उद्देश्य की ओर अग्रसर है।
आज साहित्य का स्वरूप इंटरनेट, गूगलव्हाट्सएप के माध्यम से परिवर्तित अवश्य हो गया है,किंतु इस क्रांतिकारी परिवर्तन ने साहित्य को समाज से और ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने का कार्य किया है,साथ ही साहित्य सर्जन में नए-नए युवा साहित्यकारों को मंच देने का कार्य भी साहित्य कर रहा है,ताकि युवा आज अपनी पीढ़ी का दर्द, समस्याएं देश व समाज के सामने बेहतर ढंग से रख सकें।
टी.वी. एवं फिल्म उद्योग के माध्यम से भी साहित्य ने प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अपनी भूमिका निभाई है,और समाज के हर वर्ग को इंसाफ दिलाने की पूरी तरह कोशिश जारी है।
राजनीति में भी साहित्य के प्रखर चेतना पुरुषों ने अपनी खरी-खरी दो टूक में कहकर राजनेताओं को मार्ग दिखाने का प्रयास किया है। इसके अलावा आजकल हास्य-व्यंग्य के माध्यम से भी प्रतिदिन लेखक-कवि अपनी कविताओं द्वारा नेताओं के कुत्सित कर्तव्यों पर प्रहार करते हैं और उन्हें सचेत करने का प्रयास करते हैं।
अंततः यही कह सकते हैं कि,साहित्य चूंकि समाज का दर्पण है और सदा ही उसने इसके विभिन्न रूपों में देश की आर्थिक-राजनीतिक समस्याओं और समाधानों से आम जनता को अवगत कराने तथा दिशा देने का कार्य किया है। इस तरह साहित्य की भूमिका स्वस्थ समाज के लिए सुधारक और जागरूक करने की बनी रहेगी,यही आशा करते हैं।

परिचय-रश्मि लता मिश्रा का बसेरा बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। जन्म तारीख़ ३० जून १९५७ और जन्म स्थान-बिलासपुर है। स्थाई रुप से यहीं की निवासी रश्मि लता मिश्रा को हिन्दी भाषा का ज्ञान है। छत्तीसगढ़ से सम्बन्ध रखने वाली रश्मि ने हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-शिक्षण(सेवानिवृत्त शिक्षिका )रहा है। सामाजिक गतिविधि के अन्तर्गत समाज में उपाध्यक्ष सहित कईं सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं में भी पदाधिकारी हैं। सभी विधा में लिखने वाली रश्मि जी के २ भजन संग्रह-राम रस एवं दुर्गा नवरस प्रकाशित हैं तो काव्य संग्रह-‘मेरी अनुभूतियां’ एवं ‘गुलदस्ता’ का प्रकाशन भी होना है। कईं पत्र-पत्रिकाओं में इनकी रचनाएं प्रकाशित हैं। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में-भावांजलि काव्योत्सव,उत्तराखंड की जिया आदि प्रमुख हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-नवसृजन एवं हिंदी भाषा के उन्नयन में सहयोग करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं मुंशी प्रेमचंद हैं। प्रेरणापुंज-मेहरून्निसा परवेज़ तथा महेश सक्सेना हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी भाषा देश को एक सूत्र में बांधने का सशक्त माध्यम है।” जीवन लक्ष्य-निज भाषा की उन्नति में यथासंभव योगदान जो देश के लिए भी होगा।

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