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अमृत से भी मीठी बोली

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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हिंदी  दिवस स्पर्धा विशेष………………..


मुझे नहीं है सभी विश्व की भाषाओं का ग्यान,
मैं करता हूँ अपनी हिंदी भाषा पर अभिमान।

हिन्दी वेदों की वाणी है हिन्दी भारत की पहचान,
भारत का जन-जन करता है हिन्दी का सम्मान।

भारत भाल का मुकुट है ये हिन्दी ही मातृ समान,
उर्दू,इंग्लिश तो बाहर से आये हुए मेहमान।

हिन्दी भारत की भाषा सम्मान हर जगह पाती,
आज पश्चिमी देशों में हिन्दी भी बोली जाती।

अमृत से भी मीठी बोली माँ के पय जैसी लगती,
मुँह से निकले तो लगता है जैसे सरिता-सी बहती।

हिन्दी में लिक्खे जाते ग़ज़लें,दोहे और छंद,
कविता लिखो,कहानी लिक्खो,नहीं कोई प्रतिबंध।

भरा हुआ साहित्य हमारा हिन्दी के लेखन से,
जुड़ी हुई है साँसों के संग हिन्दी इस जीवन से।

विश्व समूचे में होता है हिन्दी का सम्मान,
दे वक्तव्य विदेशों में इसने पाया है मान।

पर भारत में देख दशा हिन्दी की है दु:ख होता,
न्यायपालिका में अब भी बहता अँग्रेजी सोता।

अगर राष्ट्रभाषा है काम हिन्दी में क्यों नहीं करते,
भारत में है राज हमारा फिर किससे हैं डरते।

हिन्दी है समृद्ध हमारी,नहीं कोई है सानी,
भरे पड़े हैं पूरे भारत में हिन्दी के ग्यानी।

फिर हिन्दी तो माँ है अपनी क्यों इसको बिसराएं,
सारे भारत में घूमें,हिन्दी की अलख जगाएं॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है।

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