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साड़ीवाला…

डॉ. सोमनाथ मुखर्जी
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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मैं ऑफिस जाने के लिए जूता पहन ही रहा था,कि एक मोटा-ताजा आदमी अपने दोनों हाथों में गठरी ले कर मुझे नमस्कार करते हुए और मेरी उपेक्षा करते हुए घर में प्रवेश कर गलीचे पर बैठ गया,और गठरी खोलने लगा। मैं अचंभित रह गया,’न जान न पहचान-बड़े मियां सलाम’ वाली बात हो गई थी। अंदर से मेरी पत्नी ने उसे देख लिया था। वह आवाज़ दे कर बोली,-भैय्या आप बैठिए,मैं आ रही हूँ।
उस आदमी ने गट्ठर खोलकर एक के बाद एक साड़ी मेरी सेन्टर टेबल पर रखी। टेबल पर जगह कम पड़ गई तो साड़ियाँ सोफे में रखना शुरू किया,वह भी मुझसे बिना कुछ बोले। वह मेरी पूरी तरह से अनदेखी किए जा रहा था। मैं अंदर ही अंदर क्रोध से उबल रहा था। अगर पत्नी उसे आवाज़ देकर बैठने को नहीं बोली होती तो मैं कब का उसे घर से निकाल चुका होता। जैसे सभी के साथ होता है,मैं भी पत्नी के आगे विवश था…, इसलिए कुछ नहीं बोला। बस जूते पहनने के बाद उस साड़ी वाले को गौर से देखने लगा।
इतने देर में पत्नी भी बैठक में आ गई। तब मैंने देखा कि पत्नी को देखकर उस साड़ी वाले की बाँछें खिल उठी। उसने तुरंत खड़े होकर बड़े अदब से नमस्कार किया और साथ ही बोलना शुरू किया,-दीदी आप बोली थी इसलिए बड़ी मुश्किल से समय निकाल कर आपके लिए कुछ विशेष तरह की साड़ी लाया हूँ,जो अभी इस शहर में कोई ने भी नहीं ख़रीदी है। दीदी,आपका मुझ पर विशेष स्नेह है इसीलिये मैं सब से पहले आप के पास आया हूँ। साड़ी वाले की बातें सुनकर पत्नी खुश हो गई और तुरंत कामवाली को आवाज़ देकर बोली कि एक ग्लास पानी, चाय और साथ में बिस्किट भईया के लिए ले आना।
मैं अवाक् होकर रह गया…,जब कभी भी मेरे दोस्त घर आते हैं,तब ये मधुर मुस्कान पता नहीं कहाँ गायब हो जाती है..। वह केवल मुँह बिचकाती रहती है और कई बार बोलने के बाद पानी और चाय अंदर से आता है, तो उसमें भी बिस्किट नदारद रहता है। पत्नी को मेरा सारे दोस्त आवारा किस्म के और वक्त बर्बाद करने वाले लगते हैं। जब कभी दोस्त मेरे घर में आते हैं,ठीक उसी समय पता नहीं कहां से मेरी पत्नी के पास घर का बहुत सारा काम आ जाता है।…और यहाँ पर तो बिना कुछ बोले ही आवभगत हो रही है। मैं मन ही मन हिसाब कर रहा था कि आज मुझे कितना रूपए का चूना लगने वाला है। मैंने उसे कल ही तो मॉल से २ नयी साड़ी लेकर दी थी…। गाहे-बगाहे एक-आध साड़ी खरीद कर ही मानती है।
मैंने ऑफिस जाने का कार्यक्रम थोड़ी देर के लिए टाल दिया और उस साड़ी वाले का साड़ी बेचने का तरीका देखने लगा। उसने टेबल पर रखी एक साड़ी उठा कर उसे खोला और अपने शरीर पर ओढ़ कर दिखाने लगा। धारा प्रवाह साड़ी तथा उनके इतिहास के बारे में भी बोलने लगा। बोला,दीदी यह देखिए यह साड़ी खास आपके लिए बनारस से मंगवाई है। दीदी आप भी शादी में इसे पहनकर जा सकते हैं पर उसमें एक समस्या हो सकती है! पत्नी ने पूछा,इसमें क्या समस्या हो सकती है ? तब वह साड़ीवाला बोला,इसमें आप दुल्हन से भी ज्यादा ख़ूबसूरत लगेंगी,इसीलिए इसे आप थोड़ा सोच-समझकर पहनिएगा। पत्नी का चेहरा देखकर मुझे लगा कि यह तो पहली ही बॉल में क्लीन बोल्ड हो गई और मेरा भी तगड़ा खर्चा होने वाला है। फिर साड़ी वाले ने उस साड़ी को अलग रख दिया।
तभी अंदर से मोबाइल की घंटी बजने की आवाज आई,जो पत्नी के मोबाइल की थी। मैं मौका देखते हुए उसके साथ अंदर चला गया। फोन पत्नी की सहेली का था। पत्नी ने उससे कहा कि बाद में बात करना,अभी बहुत व्यस्त हूँ,रखती हूँ,बोलकर फोन काट दिया। मैंने पत्नी से निवेदन किया कि,अभी ४ दिन पहले ही तो बाबू साड़ी वाले से आपने २ साड़ी खरीदी थी। पत्नी धीमे स्वर में बोली, अरे क्या करते हैं,धीरे बोलिए,इस साड़ी वाले और बाबु साड़ी वाला के बीच दुश्मनी है। अगर इसे पता चल गया कि मैंने बाबु साड़ी वाले से साड़ी खरीदी तो बहुत मुश्किल हो जायेगा। यह बोल कर वह बैठक में चली गई।

फिर साड़ीवाले ने दूसरी साड़ी टेबल पर से उठायी ओर बोलने लगा यह साड़ी कांजीवरम साड़ी के नाम से विख्यात है। मेरा मानना है कि कांजीवरम साड़ी सभी महिलाओं के पास होना चाहिए। मेरी पत्नी को लगता है कि यह साड़ी का रंग पसंद नहीं आयी थी इसलिए उसने अपनी भौं थोड़ी सी सिकोड़ी ही थी कि साड़ी वाले ने तुरंत उस साड़ी को आँखों के सामने से हटा दिया और दूसरी साड़ी उठा ली। बोलने लगा,दीदी यह देखिए,आपको यह साड़ी बहुत अच्छी लगेगी,यह भारत की महंगी साड़ियों में से एक है और मैं जानता हूँ कि यह साड़ी केवल आप जैसे रईस ही खरीद सकते हैं। यह है महाराष्ट्र के पैठन शहर में बनने वाली नौ गज लम्बी पैठणी साड़ी।
मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उसकी कीमत पूछ ली। कीमत सुनने के बाद मेरा पसीना निकलने लगा। मैंने उस साड़ी वाले से पूछा, भाई साहब,आप कम कीमत की साड़ी नहीं रखते हो क्या ? मेरा यह डायलॉग सुनते ही पत्नी आग-बबूला हो गई। मेरी तरफ कठोर नज़रों से देखा,पर वाणी में अत्याधिक कोमलता लाते हुए मुझसे बड़े प्रेम से बोली, क्यों जी,आप तो ऑफिस जा रहे थे न! आज आपको देरी नहीं हो रही है,जबकि हर दूसरे दिन ‘ऑफिस जाने में लेट हो गया’ बोलकर मेरा दिमाग ख़राब करते रहते हैं…।
मैंने इज्ज़त के साथ घर से निकल जाना ही बेहतर समझा,और बाहर आकर अपनी बाइक स्टार्ट कर ऑफिस के लिए निकल गया,पर मैं मन ही मन घबरा रहा था…यह सोचकर कि आज मुझे कितने का चूना लगने वाला है…।

परिचय- डॉ. सोमनाथ मुखर्जी (इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस -२००४) का निवास फिलहाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़) में है। आप बिलासपुर शहर में ही पले एवं पढ़े हैं। आपने स्नातक तथा स्नाकोत्तर विज्ञान विषय में सीएमडी(बिलासपुर)एलएलबी,एमबीए (नई दिल्ली) सहित प्रबंधन में डॉक्टरेट की उपाधि (बिलासपुर) से प्राप्त की है। डॉ. मुखर्जी पढाई के साथ फुटबाल तथा स्काउटिंग में भी सक्रिय रहे हैं। रेलवे में सहायक स्टेशन मास्टर के पद से लगातार उपर उठते हुए रेल के परिचालन विभाग में रेल अधिकारी के पद पर पहुंचे डॉ. सोमनाथ बहुत व्यस्त रहने के बावजूद पढाई-लिखाई निरंतर जारी रखे हुए हैं। रेल सेवा के दौरान भारत के विभिन्न राज्यों में पदस्थ रहे हैं। वर्तमान में उप मुख्य परिचालन (प्रबंधक यात्री दक्षिण पूर्व मध्य रेल बिलासपुर) के पद पर कार्यरत डॉ. मुखर्जी ने लेखन की शुरुआत बांग्ला भाषा में सन १९८१ में साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित प्रतियोगिता से की थी। उसके बाद पत्नी श्रीमती अनुराधा एवं पुत्री कु. देबोलीना मुख़र्जी की अनुप्रेरणा से रेलवे की राजभाषा पत्रिका में निरंतर हिंदी में लिखते रहे एवं कई संस्था से जुड़े हुए हैं।

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