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सुहाना सफर

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना।
हो पास जब तक सफर है सुहाना॥

पतझड़ नहीं है बहारों का मौसम,
अंधेरों में जगमग सितारों का मौसम।
मुहब्बत का गायेंगे मिल कर तराना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

हर दिन ही होगी दिवाली औ होली,
सुनूँगा तेरी प्यारी प्यारी-सी बोली।
चलेगा नहीं कोई भी तब बहाना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

आपस में सुख-दु:ख सभी बाँट लेंगे,
ग़म की ये रातें भी हम काट लेंगे।
मेरे घर की बगिया तुम्हें है खिलाना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

बिना तेरे कैसे सफर होगा पूरा,
तुम्हीं गर नहीं तो सफ़र है अधूरा।
तुम्हें ज़िन्दगी को है ज़न्नत बनाना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

बिना तेरे गाड़ी ये कैसे चलेगी,
जीवन की ये बगिया कैसे खिलेगी।
खिलाकर के फूलों को गुलशन सजाना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

लिखूंगा ग़ज़ल इक लबों पर तुम्हारे,
अश़आर होंगे बहुत प्यारे प्यारे।
तरन्नुम में बैठे हुए गुनगुनाना,
अगर साथ हो तुम सफर है सुहाना…॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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