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हममें कभी बनी ही नहीं

प्रीति शर्मा `असीम`
नालागढ़(हिमाचल प्रदेश)
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रंग और हम(होली स्पर्धा विशेष )…

रंग और हममें कभी बनी ही नहीं,
दूर से बस एक-दूसरे को देखते ही रहे
घूरते रहे और इंतजार करते ही रहे,
हम सोचते कि वह चल कर हमारे पास आएगा
और शायद वह सोचता रहा कि हम चलकर उसके पास जाएंगें,
इसी सोच में दोनों के कदमों की दूरी कभी घटी ही नहीं
रंग और हममें कभी बनी ही नहीं…।

बचपन की किताब पर ड्राइंग की कॉपी पर चार लकीरें खींच कर,
एक घर बनाता था…रंग भरता था अपने घर के
लेकिन अपने घर के सपने के साथ अक्सर बिखर जाता था,
वक्त ने फिर करवट बदली हम जवानी के इंद्रधनुषी रंगों के पीछे भागने लगे
चारदीवारी के बाहर उस छोटी-सी खिड़की से आकाश की ऊंचाइयों को मापने लगे,
असफलता की लिखावट ने हाथ तो काले किए
हम जिंदगी के स्वर्ण अक्षरों की चमक के रंग से अक्सर मात खाते रहे,
रंग और हममें कभी बनी ही नहीं…।

हम रंगों से प्यार जताते रहे और रंग हमसे दुश्मनी -दर-दुश्मनी निभाते रहे,
वक्त की परिपक्वता में जिंदगी को समझौते और उम्मीदों के रंगों में रंगते रहे
नई आशाओं को हम ला-ला के रंग जिंदगी में भरते रहे,
झुठला के ही सही-खुश होने की इस नौटंकी में हम जिंदगी के रंगों से खेलते ही रहे
और जब…उम्मीदों के रंगों ने भी हाथ छोड़ दिया,
हमने रंग मांगे थे जिंदगी से और जिंदगी ने रंगों को जलाकर सब राख कर दिया
अब सोचता हूँ रंग और हममें कभी बनी ही नहीं…।
मैं प्यार करता रहा रंगों से,
और जिंदगी व रंगों में दुश्मनी सारी उम्र बनी रही॥

परिचय-प्रीति शर्मा का साहित्यिक उपनाम `असीम` हैL ३० सितम्बर १९७६ को हिमाचल प्रदेश के सुंदरनगर में अवतरित हुई प्रीति शर्मा का वर्तमान तथा स्थाई निवास नालागढ़(जिला सोलन,हिमाचल प्रदेश) हैL आपको हिन्दी,पंजाबी सहित अंग्रेजी भाषा का ज्ञान हैL पूर्ण शिक्षा-बी.ए.(कला),एम.ए.(अर्थशास्त्र,हिन्दी) एवं बी.एड. भी किया है। कार्यक्षेत्र में गृहिणी `असीम` सामाजिक कार्यों में भी सहयोग करती हैंL इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी,निबंध तथा लेख है।सयुंक्त संग्रह-`आखर कुंज` सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैंL आपको लेखनी के लिए प्रंशसा-पत्र मिले हैंL सोशल मीडिया में भी सक्रिय प्रीति शर्मा की लेखनी का उद्देश्य-प्रेरणार्थ हैL आपकी नजर में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मैथिलीशरण गुप्त,जयशंकर प्रसाद,निराला,महादेवी वर्मा और पंत जी हैंL समस्त विश्व को प्रेरणापुंज माननेवाली `असीम` के देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“यह हमारी आत्मा की आवाज़ है। यह प्रेम है,श्रद्धा का भाव है कि हम हिंदी हैं। अपनी भाषा का सम्मान ही स्वयं का सम्मान है।”

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