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हम मन से खारे नहीं

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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यूँ तो सागर हैं हम पर मन से खारे नहीं,
मौजों में ही जीते हैं हम किनारे नहीं…
अपने दिल को जलाकर रोशनी देते हैं,
तुम्हारे पथ में पड़े हैं पर अंगारे नहीं।

क्यों सवाल करते कितना प्यार है तुमसे,
कहना बनता नहीं बस इजहार है तुमसे…
नाप-तौल कभी प्यार में होता ही नहीं,
सागर हूँ प्यार का असीम प्यार है तुमसे।

मौन पीड़ा कभी करती इशारे नहीं,
आग चंदन में भी होती है सरारे नहीं…
बह जाए जमाने की लहरों से कभी,
हमारी बाँहों के कमजोर किनारे नहीं।

प्रेम-विश्वास है प्रेम ही समर्पण है,
प्रेम-जीवन है आत्मा का दर्पण है…
प्रेम को तो समझता है कोई-कोई,
प्रेम कथा नहीं,प्रेम तो दर्शन है।

प्रेम सागर को सुखा सके गमे अंगारे नहीं,
लकड़ी की आग को काट सकते आरे नहीं…
एक-एक लहर है उठती अमृत की हृदय से,
सब सागर जहां में होते सदा खारे नहीं॥

परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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