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हर राज्य में अलग-अलग नाम से होली

शशांक मिश्र ‘भारती’
शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश)

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रंग और उल्लास के लिए विश्वभर में विख्यात पर्व होली वैसे तो पूरे भारत में और पड़ोसी देश नेपाल में हिन्दू पंचांग के अनुसार मनाया जाता है। पूरा देश इसकेरंग में अपने को डुबो लेता है,पर देश के अनेक राज्यों में यह अलग-अलग नामों से भी मनाया जाता है,जिसको जानकर हम इस पर्व को और अधिक अच्छी तरहसमझ सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में होली बड़े हर्ष और उल्लास से होली के नाम से मनायी जाती है। पहले दिन रात को होलिका दहन होता है। अगले दिन प्रतिपदा को रंग-गुलालएक-दूसरे को लगाते हैं। शाम को स्नान कर नये कपड़े पहनकर मन्दिरों में जाते हैं। उसके एक-दूसरे के घरों में जाकर गले मिलते हैं। प्रणाम कर बड़ों का आशीर्वादलेते हैं,होली के प्रमुख पकवान गुझिया खाते हैं। यहां के ब्रज की लट्ठमार होली बड़ी प्रसिद्ध है।

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ में होली का पर्व लगभग पन्द्रह दिन पहले आरम्भ हो जाता है। बैठकर बैठकी होली और खड़े होकर खड़ी होली गायी जाने लगती है। यह पूरी तरह शास्त्रीय संगीत होता है। वाद्ययंत्र गायन के साथ चलते हैं। यहां पर मुख्य होली पर दो दिन रंग-गुलाल चलता है। गांव की टोलियां घर-घर जाकर खड़ीहोली गाती हैं। घर का मुखिया सभी होलियारों का स्वागत सत्कार करता है,और होली के अवसर के पकवान खिलाता है।

हरियाणा में कहते हैं कि यहां होली का आना देवरों के लिए किसी मुसीबत से कम नहीं है। जी हाँ,उसका कारण है होली के अगले दिन धुलंडी वाले दिनभाभियों द्वारा अपने देवर को सताया जाता है। उसको रंग-गुलाल लगाने की प्रथा है।

बंगाल में होली पर्व को आम जनमानस दोल जात्रा के रूप में मनाता है। उसका कारण है यहां पर महान सन्त चैतन्य महाप्रभु के जन्म दिवस को इस पर्वसे जोड़ देना,जिससे इस त्यौहार का उत्साह दुगुना हो जाता है।

मध्यभारत और महाराष्ट्र में यह पर्व रंगपंचमी के रूप में मनाते हैं। लगभग पन्द्रह दिन पहले से यहां पर तैयारी आरम्भ हो जाती है और एक-दूसरे कोसूखा गुलाल लगाते हैं।

पंजाब में त्यौहारों की अपनी ही शान है। ऐसा ही कुछ इस त्यौहार में भी दिखाई देता है। यहां होली को होला मोहल्ला के नाम से मनाते हैं और इस दिनशक्ति प्रदर्शन भी करते हैं,जो यहां की मुख्य परम्परा है।

तमिलनाडु जो दक्षिण का महत्वपूर्ण राज्य है। यहां पर इस पर्व को कामदेव की कथा से जोड़कर देखा जाता है। कामदेव का एक नाम वसन्त है। अतःयहां वसन्त उत्सव को तमिल भाषा में कमन पोडिगई के रूप् में मनाते हैं।

गोवा देश में परम्पराओं की दृष्टि से आधुनिकतम राज्य है, जिसकी विदेशी तक प्रशंसा करते हैं। यहां पर होली को शिमगो के नाम से मनाते हैं,और यहांपर इस दिन जुलूस निकालते हैं। उसके बाद मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

मणिपुर हरियाली से भरपूर हिमालय का पूर्वी राज्य ही नहीं है अपितु अपनी परम्पराओं-पर्वों को मनाने के तौर-तरीकों से अलग पहचान भीबनाये हुए है। यहां यह पर्व मणिपुरी में योगसांग में पूर्णिमा के हर गांव नगर नदी सरोवर आदि के किनारे हर्षोल्लास से मनाया जाता है। योगसांग को हिन्दी मेंकहते हैं छोटी झोपड़ी,जी हाँ यहां पर पहले सब लोग छोटी-छोटी झोपड़ियों का निर्माण करते हैं,फिर उसमें इसे मनाते हैं। सामान्यतः यह झोपड़ियां नदी-तालाबों केकिनारे पर बनायी जाती हैं।

हिमाचल की होली के अपने रंग हैंl यहां कुल्लू की होली विश्व प्रसिद्ध है,जो महीनेभर तक मनायी जाती है। यहां बर्फ की होली भी पर्यटकों द्वारा कुछ सालोंसे खेली जाने लगी है। बिना रंग की होली जैनी लोग कांगड़ा में मनाते हैं।

अरुणाचल में होली का अन्दाज किसी को भी दीवाना बना देता है। यहां पर होली को न्योकुम कहते हैं,जिसमें होली की हुड़दंग बिल्कुल नहीं है।पारम्परिक ढंग से पूरा गांव मिलकर मनाता है। यहां का पर्व होली से कुछ पहले हो जाता है। यह लोग होलिका दहन की तर्ज पर अपने घरों की सभी पुरानी चीजोंको जला देते हैं। मान्यता है कि इससे घर में फैली नकारात्मक शक्तियों और बुराईयों का अन्त होता है।

इसके अलावा दक्षिण गुजरात के आदिवासियों में होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में होली पर लोकगीतों की परम्परा है। मध्यप्रदेश के मालवा के पठारीक्षेत्र में आदिवासी भगोरिया के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। बिहार में होली पर फगुआ गा-गाकर मस्ती करते हैं। जम्मू और कश्मीर में होली को होली के रूप में बड़े उल्लास से मनाते हैं। मन्दिरों में विशेष आयोजन होता है। एक-दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं। शोभायात्राएं निकाली जाती हैं। पुंछ राजौरी कठुआ औरजम्मू में होली का विशेष आकर्षण रहता है। केरल में मंजल कुली के नाम से मनाते हैं।

इस तरह हमारे देश की विविधता में एकता जैसे प्रसिद्ध है,ठीक वैसा ही राज्यों में होली को लेकर भी दिखता है। यह हमारी सांस्कृतिक एकता के साथ-साथ भारतीय संस्कृति की अक्षुण्यता का प्रतीक भी है।

परिचयशशांक मिश्र का साहित्यिक उपनाम-भारती हैl २६ जून १९७३ में मुरछा(शाहजहांपुर,उप्र)में जन्में हैंl वर्तमान तथा स्थाई पता शाहजहांपुर ही हैl उत्तरप्रदेश निवासी श्री मिश्र का कार्यक्षेत्र-प्रवक्ता(विद्यालय टनकपुर-उत्तराखण्ड)का हैl सामाजिक गतिविधि के लिए हिन्दी भाषा के प्रोत्साहन हेतु आप हर साल छात्र-छात्राओं का सम्मान करते हैं तो अनेक पुस्तकालयों को निःशुल्क पुस्तक वतर्न करने के साथ ही अनेक प्रतियोगिताएं भी कराते हैंl इनकी लेखन विधा-निबन्ध,लेख कविता,ग़ज़ल,बालगीत और क्षणिकायेंआदि है। भाषा ज्ञान-हिन्दी,संस्कृत एवं अंगेजी का रखते हैंl प्रकाशन में अनेक रचनाएं आपके खाते में हैं तो बाल साहित्यांक सहित कविता संकलन,पत्रिका आदि क सम्पादन भी किया है। जून १९९१ से अब तक अनवरत दैनिक-साप्ताहिक-मासिक पत्र-पत्रिकाओं में रचना छप रही हैं। अनुवाद व प्रकाशन में उड़िया व कन्नड़ में उड़िया में २ पुस्तक है। देश-विदेश की करीब ७५ संस्था-संगठनों से आप सम्मानित किए जा चुके हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- समाज व देश की दशा पर चिन्तन कर उसको सही दिशा देना है। प्रेरणा पुंज- नन्हें-मुन्ने बच्चे व समाज और देश की क्षुभित प्रक्रियाएं हैं। इनकी रुचि- पर्यावरण व बालकों में सृजन प्रतिभा का विकास करने में है।

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