नई दिल्ली।
दुनिया की सबसे लचीली भाषा हिंदी है। भारत के बाहर कई देशों में हिंदी की लोकप्रियता है, लेकिन इतनी समृद्धि के बावजूद हिंदी की स्थिति को हम चिंताजनक मानते हैं। दुनिया की बड़ी भाषा होने के कारण गूगल जैसी वैश्विक कंपनी को हिंदी को अपनाना पड़ा, लेकिन भारत में हिंदी को आज तक राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
मोतीलाल नेहरू महाविद्यालय हिंदी साहित्य सभा अनुकृति द्वारा ‘हिंदी दिवस’ के अवसर पर आयोजित हिंदी उत्सव कार्यक्रम में हिंदी के विकास से जुडे विविध प्रश्नों और उपयोगिता ‘हिंदी राजभाषा ही नहीं, हमारी शान है’ विषय पर आयोजित परिचर्चा में यह बात प्रो. पवन सिन्हा ने कही। प्रो. सिन्हा ने कहा कि यह सच है कि दक्षिण भारत में राजनीतिक रूप से हिंदी का विरोध हो रहा है, लेकिन धीरे-धीरे यह समस्या दूर हो जाएगी। ऐसा मुझे विश्वास है।
हिंदी विभाग के प्रभारी प्रो. धनंजय दुबे ने कहा कि हिंदी सिर्फ संप्रेषण की भाषा नहीं, बल्कि इसमें हिंदी समाज के लोगों के जीवन का अनुभव, ज्ञान और हुनर को भी अभिव्यक्त होना चाहिए।
कार्यक्रम में हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ. अशोक कुमार, डॉ. शशि कुमार, डॉ. अनिरुद्ध कुमार व हेमंत कुमार सिंह सहित बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन हिंदी सब्जेक्ट सोसायटी के संयोजक डॉ. भास्करलाल कर्ण ने किया।
🔹कवि गोष्ठी में सुनाई रचनाएँ
इस कार्यक्रम के पश्चात कवि गोष्ठी का भी आयोजन किया गया। इसमें कवियित्री ज्योति त्रिपाठी, शिवानी ठाकुर व कनिष्का कुमारी आदि ने अपनी कविताएं सुनाई। काव्य पाठ का संचालन छात्र आनंद पांडे ने किया।