हेमा श्रीवास्तव ‘हेमाश्री’
प्रयाग(उत्तरप्रदेश)
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आँखें जगी है,
रात सोई-सोई-सी
बातें छिड़ी हैं।
आँगन बीच,
ये स्वप्निल नयन
ये नभ झील।
है मंद-मंद,
चल रही पवन
पलकें बंद।
गुजर रही,
पहर पे पहर
रात सहमी।
कुतर रहा,
कोई चाँद धीरे से
वो घट रहा।
बोझिल कंठ,
सूखे मुख अधर
मादक गंध।
औंधी पड़ी है,
वो एक करवट
रातरानी है।
सूरज चला,
पौ भी फट रही है
जागी है विभा।