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विवेक

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

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अजय को सुबह आठ बजे आफिस पहुंचना होता है,लेकिन अक्सर नाश्ते में देर होने की वजह से वो समय पर नहीं पहुंच पाता।
आज भी पौने आठ बज गए,पर नाश्ता नहीं लगा। अजय चिल्ला पड़ा,-“ये क्या तमाशा है रोज का! मैंने कल बताया था कि आज डायरेक्टर साहब की विजिट है,मुझे जल्दी आफिस पहुंचना है,पर तुमको क्या मतलब। पौने आठ बज गए,मेमसाहब से अभी नाश्ता नहीं लगा। अब रहने दो। तुम ही कर लेना, मेरे हिस्से का भी। मैं जा रहा हूँ।”
रीमा भी बोल बैठी,-“जाओ-जाओ। रौब किसको दिखाते हो।”
बात बढ़ गई तो रीमा ने मायके चले जाने की बात कह दी। अजय भी बोल पड़ा, -“अरे कल की जाती आज चली जाओ।” वो आफिस के लिये निकल गया। अजय के जाते ही रीमा ने माँ को फोन लगा कर कहा,-“माँ अब मैं यहां नहीं रह सकती,दस बजे की ट्रेन से आ रही हूँ।”
“अरे पगली ठहर। मैं तेरे पापा से बात करती हूँ। ऐसे ही चार महीने पहले सीमा( रीमा की बड़ी बहन )भी बिना बताए आ गई थी। तेरे पापा ने तुरन्त उसे वापस भेज दिया। देख आज वो खुश है न। मैं इनसे बात करके तुझे बताती हूँ। जब तक मेरा फोन न आये,तू निकलना नहीं।”
रीमा पापा का जवाब जानती थी। मन मारकर बैठ गई। कुछ देर बाद जब मन शांत हुआ तो स्वयं उसका विवेक जागा। उसे लगा वो ही गलत है। वो तो खुद घरवालों तक का ख्याल नहीं रख पाती,जबकि अजय को तो बाहर वालों, पूरे आफिस वालों बॉस को संतुष्ट करना पड़ता होगा। बेचारा रोज किसी-ना-किसी की सुनता होगा।
उसके बाद रीमा ने अजय की पसंद के कुछ पकवान बनाए। अजय के आने पर गर्मा-गरम पकौड़े तलने की तैयारी कर ली। सारे पकवान डायनिंग टेबल पर सजा कर खुद भी सज-धज कर तैयार हो गई। अजय आया तो रीमा उसे दरवाजे पर मिली। उसके हाथ से आफिस बैग लिया,और कहा-“हाथ-पैर धोकर पहले नाश्ता कीजिए,फिर कुछ कीजिएगा।”
अब दोनों विवेक से काम लेते,खुश रहते हैं। रीमा सोचती है,अगर उस दिन माँ ने मना नहीं किया होता तो शायद ये खुशी जीवन में कभी नहीं आती।

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

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