कुल पृष्ठ दर्शन : 289

You are currently viewing प्रकृति की गुहार

प्रकृति की गुहार

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)

**********************************************************************

ओ आसमां वाले तू कभी आ तो जमीं पे,
दे बन्दगी बन्दों को कभी आ के जमीं पे।
ओ आसमां वाले…

हर कोई यहां तेरे बनाये को मिटाता,
बनाये को मिटाता,
पर कोई मिटाये को नहीं फिर से बनाता,
नही फिर से बनाता।
हैं पेड़,नदी-नाले,सभी खत्म जमीं पे,
दे बन्दगी बन्दों को कभी आ के जमीं पे।
ओ आसमां वाले…

सूरज,चाँद,तारे,सब तेरे आसमां वाले,
तेरे आसमां वाले,
तूने रखा इनको है कब से ही सम्भाले,
कब से ही सम्भाले।
सृष्टि की नहीं कद्र कोई करता जमीं पे,
दे बन्दगी बन्दों को कभी आ के जमीं पे।
ओ आसमां वाले…

मानव ने लिया बाँट तुझे धर्मों में अपने,
तुझे धर्मों में अपने,
दानव ये बना करता लिये झूठे ही सपने,
लिये झूठे ही सपने।
हैं आसमां जैसे तेरे अपने भी जमीं पे,
दे बन्दगी बन्दों को कभी आ के जमीं पे।
ओ आसमां वाले…

ओ आसमां वाले तू कभी आ तो जमीं पे,
दे बन्दगी बन्दों को कभी आ के जमीं पेll

परिचय-हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।

Leave a Reply