कृष्ण कुमार कश्यप
गरियाबंद (छत्तीसगढ़)
**************************************************************************
हो गया दिवाना,देखा जबसे तुमको,
ना रहा ठिकाना,भूल गया खुद को।
करती मेरा दिल बेकरार,
तेरी पायल की झनकार।
चाँद-सा चेहरा तेरा,
आँखों से दिल में उतर गया।
सोने न देती मुझे,
दिल धड़काती है यार सदा।
होंठों की लाली,कानों की बाली,
आँखों का काजल,करता है घायल।
पागल करती है सरकार,
तेरी पायल की झनकार।
लिखता रहूं तुझे मैं,
सनम सुबह-शाम चारों पहर।
है क्या नशा तुझमें,
छाया है रात-दिन इस कदर।
ग़ज़ल ही ग़ज़ल तेरे चेहरे पे लिखी है,
चौंसठ कलाएं मुस्कान में छिपी है।
मुझे बना दिया फनकार,
तेरी पायल की झनकार।
सदियों-सी लम्बी रातें,
सदियों से लम्बे हो गये दिन।
कैसे कहूं मन की बातें,
कहीं ये दिल ना लगे तुम बिन।
ख्वाबों में तू,हर साँस में बसी है,
तू ही धड़कन,तू मेरी हर खुशी है।
मैंने भुला दिया अब संसार,
सुन तेरी पायल की झनकारll
परिचय-कृष्ण कुमार कश्यप की जन्म तारीख १७ फरवरी १९७८ और जन्म स्थान-उरमाल है। वर्तमान में ग्राम-पोस्ट-सरगीगुड़ा,जिला-गरियाबंद (छत्तीसगढ़) में निवास है। हिंदी, छत्तीसगढ़ी,उड़िया भाषा जानने वाले श्री कश्यप की शिक्षा बी.ए. एवं डी.एड. है। कार्यक्षेत्र में शिक्षक (नौकरी)होकर सभी सामाजिक गतिविधियों में सहभागिता करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,कहानी और लघुकथा है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में साहित्य ग़ौरव सम्मान-२०१९, अज्ञेय लघु कथाकार सम्मान-२०१९ प्रमुख हैं। आप कई साहित्यिक मंच से जुड़े हुए हैं। अब विशेष उपलब्धि प्राप्त करने की अभिलाषा रखने वाले कृष्ण कुमार कश्यप की लेखनी का उद्देश्य-हिंदी भाषा को जन-जन तक पहुंचाना है। इनकी दृष्टि में पसंदीदा हिंदी लेखक- मुंशी प्रेमचंद हैं तो प्रेरणापुंज-नाना जी हैं। जीवन लक्ष्य-अच्छा साहित्यकार बनकर साहित्य की सेवा करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“मेरा भारत सबसे महान है। हिंदी भाषा उसकी शान है।”