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मैं `बेटी` हो कर शर्मिंदा हूँ…

मोहित जागेटिया
भीलवाड़ा(राजस्थान)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना……….
मेरी अस्मत से खेल कर,
क्यों हो बार बार जिंदा ?
जबकि,मैं हर बार मर जाती हूँ,
मैं बेटी हो कर शर्मिंदा हूँ!
कहाँ पर अब खड़ी हूँ,
डर लगता है कहाँ पर अब रहूँ।
सोचती हूँ! क्यों ? आई मैं इस दुनिया में ?
हैवानियत की हर घटना को,
देख कर मेरे अंदर ये सवाल होता है।
वो हैवानियत की घटना,
जिसमें मेरे जिस्म से खेल कर
मुझें अग्नि में जला दिया जाता है।
क्यों भूल जाते हैं वो शैतान,
कल उनके घर में भी को कोई
बेटी,बहूँ,माँ एक नारी रहती होगी,
कब तक मैं ऐसी वेदना झेलती रहूँगी ?
मैं जीत कर आई थी दुनिया में,
आज हार कर जा रही हूँ अबl
जिस दिन ऐसी घटनाओं के,
दरिन्दों को खुले चौराहे पर
लटका दिया जायेगा उस दिन,
में हार कर जीत चाहूँगी
लेकिन मैं कब सुरक्षित हो जाऊँगी ?
किस दिन समाज में ये संदेश जाएगा ?
जिस दिन लोगों के हृदय में,
भय-कानून का डर आएगा।
बुरे काम का बुरा परिणाम होता है,
ये भाव हर इंसान के अंदर आ जाएगाll

परिचय–मोहित जागेटिया का जन्म ६ अक्तूबर १९९१ में ,सिदडियास में हुआ हैl वर्तमान में आपका बसेरा गांव सिडियास (जिला भीलवाड़ा, राजस्थान) हैl यही स्थाई पता भी है। स्नातक(कला)तक शिक्षित होकर व्यवसायी का कार्यक्षेत्र है। इनकी लेखन विधा-कविता,दोहे,मुक्तक है। इनकी रचनाओं का प्रकाशन-राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में जारी है। एक प्रतियोगिता में सांत्वना सम्मान-पत्र मिला है। मोहित जागेटिया ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-समाज की विसंगतियों को बताना और मिटाना है। रुचि-कविता लिखना है।