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`नारी` कोई खिलौना नहीं,गुनाहगारों को कड़ी सजा जरूरी

तृप्ति तोमर `तृष्णा`
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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हैदराबाद घटना-विशेष रचना……….
आज हमारे देश मेंं बढ़ रहे अपराध और अपराधियों के लिये सरकार द्वारा सख्त कानून व्यवस्था नहीं है। इतने संगीन अपराध होने के बाद भी देश की सरकार व राजनेता इतनी शांति से कैसे बैठ सकते हैं। शायद ऐसा उनके किसी अपने के साथ नहीं होता इसलिए। बड़ी-बड़ी बातों से,झूठे दिलासों से कुछ नहीं होने वाला,ये सब नाटक,ढोंग, मोमबत्ती जलाने,अश्रुपूरित श्रद्धांंजलि देने का नाटक बंद कर देना चाहिए। देश की सरकार ही देश की बेटी के लिए सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकती,तो किसी और से क्या उम्मीद की जाए। इससे तो बेहतर है फिर ये शांति,न्याय प्रणाली बंद करके,अपराधियों को बेटी के परिजनों-जनता को सौंप देना चाहिए। और बेटियों को खुद की रक्षा के लिए कानून अपने हाथ मेंं लेने का अधिकार होना चाहिए,तथा आत्म रक्षा के लिए कानून हाथ में लेने के लिये कोई सजा भी नहीं होनी चाहिए। ये अधिकार केवल और केवल बेटियों के लिए होना चाहिए। जिससे कि उन्हें किसी देश या सरकार की कानून व्यवस्था से कोई उम्मीद ना रहे।
इतने संगीन अपराधों के लिए सरकार क्या शांति शांति का राग अलापती रहती है,वो भी उन अपराधियों के लिए जिन्होंनें अपराधों की सीमा ही लांघ दी।उनके प्रति न्याय,शांति का संदेश ? ऐसे अपराधियों,जो इंसान के नाम पर कंलक हैं,उनके प्रति सुधार या न्याय देकर सरकार क्या बदलना चाहती है ?
और जिन बेटियों की बलि चढ़ाई जाती है,या बेटी जिंदा तो रहती है,लेकिन उनकी जिंदगी नरक की यातना-सी बना दी जाती है,तो क्या सरकार का उनकी तरफ कोई फर्ज नहीं बनता! और तो कुछ कर नहीं सकते,लेकिन जो कर सकते हैं वो तो करना ही चाहिए,जिससे आने वाले समय में ऐसा ना हो।
सवाल तो यह है कि,जब उन बेटियों की जिंदगी ही नहीं,पूरी दुनिया उजाड़ कर दुनिया से ही खत्म कर दिया जाता है,तब उस बेटी के परिजनों का,अन्य बेटियों का ख्याल नहीं आता सरकार को ? जब दरिंदगी फैलाने वाले जानवरों को सजा देने की बात आती है,तब अपराधियों के नाबालिग होने,नादानी, घर की जिम्मेदारियों की आड़ में अपराध और अपराधियों को पनाह और बढ़ावा दिया जा रहा है। इतनी दूषित सोच रखने वालों को सुधारने के हर प्रयास बेकार हैं। सुधार और माफी किसी गलती के लिए होती है,इस तरह रुह दहलाने वाले भयानक गुनाह के लिए नहीं। इसलिए इस तरह के गुनाह की सजा भी रुह दहलाने वाली होना चाहिए,जिससे कि कोई भी भविष्य में ऐसा करने से पहले हजार बार सोचे। ऐसे अपराध के लिए इतना डर हो,इसके लिए भी कि कोई गलती से भी ऐसे गुनाह ना करे। सीधी-सी बात है कि,जब तक इनको इनके गुनाह की कड़ी से कड़ी सजा नहीं दी जाएगी,तब तक न किसी की सोच बदलेगी,न समाज,और न ही देश में नारी,बेटियों को सुरक्षा का एहसास आएगा।
इतने समय से न्याय,शांति प्रक्रिया है,हमारे देश की कानून व्यवस्था में,तो क्या अपराध कम हुए ? हो गई बेटियां सुरक्षित ? हो गया भारत सुरक्षित ?
क्या ऐसे होगा अपराध और आतंकवाद मुक्त भारत ? यह इतनी छोटी बात नहीं है,जिसे देखकर भी नजरअंदाज किया जा सके।
कुछ लोगों के कारण आज देश की बेटियों,माता-पिता,समाज में डर और दहशत पल रही है। सोचना चाहिए कि,क्या सरकार की इन अपराधियों के प्रति सहानुभूति,हमदर्दी,शांति की भावना होनी चाहिए ?
उन मासूम लड़कियों के प्रति न्याय भी नहीं। मैं पूछती हूँ ये दोहरा रूप क्यों है सरकार की कानून व्यवस्था का ? क्या हम मान लें कि इन जल्लादों की शिकार हुई बेटी,उन पर ज्यादती करने से सरकार और कानून भी पीछे नहीं रहे। आखिर क्या कसूर है इन बेटियों का,क्या बेटी होना ही सजा है! वो भी खुद के लिए,और अपराधियों के लिए वरदान। यदि ऐसा ही चलता रहा तो फिर भारत मेंं महाभारत,रामायण जैसे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के अस्तित्व, वास्तविकता का पाठ पढ़ाया गया है,तो इनका होने का कोई मतलब नहीं है। इन धार्मिक ग्रथों में भी भयावह परिणाम देखने को मिले हैं। इस समाज, संस्कृति में नारी को देवी स्वरूप में पूजा जाता है। तो क्या देवी रूप का ऐसा अनादर…,किसी नारी के सम्मान को तार-तार करके उसकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करना,इससे बड़ा और कोई गुनाह हो ही नहीं सकता। तो ऐसा गुनाह करने वालों के लिए हमदर्दी,प्यार,शांति दिखाकर किसलिए अपराधों व अपराधियों को गुनाह करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है ?
यह शांतिप्रियता का संदेश किसलिए,क्या लगता है अपराधियों की घटिया सोच व अपराधिक मानसिकता को सुधारना मुमकिन है ? इस तरह के न्याय करके अपराध और अपराधियों को कहीं ना कहीं साथ देना है,खुद भी अपराध में शामिल होना है।
मुझे लगता है जैसा जुर्म,वैसी ही सजा होनी चाहिए। आत्मा को तार-तार करने वाले जुर्म की सजा कम,सुधार या माफी नहीं होनी चाहिए। तब ही इन बढ़ते अपराधों को रोकने की दिशा में प्रयास संभव है। सबसे अपील कि,सरकार के झूठे न्याय, या अन्याय को स्वीकार ना करें,तथा उसके और अपराधों के लिए हमेशा सख्त आवाज उठाएं,और हो सके तो नारी को खुद की रक्षा के लिए सशक्त बनाएं। किसी से सहारे या मदद की उम्मीद कर खुद को नुकसान पहुंचाने का मौका ना दें। अपनी रक्षा-सम्मान के लिए खुद लड़ना होगा,दूसरों पर निर्भर होकर खुद को कमजोर ना बनाएं। खुद की शक्ति को जगाएं,खुद को पहचानें।

परिचय-तृप्ति तोमर पेशेवर लेखिका नहीं है,पर प्रतियोगी छात्रा के रुप में जीवन के रिश्तों कॊ अच्छा समझती हैं।यही भावना इनकी रचनाओं में समझी जा सकती है। आपका  साहित्यिक उपनाम-तृष्णा है। जन्मतिथि २० जून १९८६ एवं जन्म स्थान-विदिशा(म.प्र.) है। वर्तमान में भोपाल के जनता नगर-करोंद में निवास है। प्रदेश के भोपाल से ताल्लुक रखने वाली तृप्ति की लेखन उम्र तो छोटी ही है,पर लिखने के शौक ने बस इन्हें जमा दिया है। एम.ए. और  पीजीडीसीए शिक्षित होकर फिलहाल डी.एलएड. जारी है। आप अधिकतर गीत लिखती हैं। एक साझा काव्य संग्रह में रचना प्रकाशन और सम्मान हुआ है। 

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