कुल पृष्ठ दर्शन : 238

You are currently viewing नकारात्मक  नहीं,सकारात्मक सोचिए

नकारात्मक नहीं,सकारात्मक सोचिए

श्रीमती अर्चना जैन
दिल्ली(भारत)
***************************************************************
दोस्तों,इस संकट के समय में हमारे दिमाग में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो हमें कुछ सकारात्मक भी सोचना चाहिए।
आज हर तरफ ‘कोरोना’ नाम की महामारी फैली हुई है,जिसे देखो उसे ही इस बीमारी का भय है। इस कोरोना नाम की महामारी से इस मुसीबत में भी हमें हिम्मत नहीं हारनी है। हमें नकारात्मक सोच नहीं,बल्कि सकारात्मक सोच पैदा करनी है। आप जानते ही हैं कि,प्रत्येक आविष्कार के कुछ अच्छे फायदेमंद परिणाम होते हैं,तो कुछ बुरे दुष्परिणाम भी। ऐसे में इस महामारी से हमें भी बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। आइए देखते हैं कि वो क्या है-
जैसे इस महामारी के होने से हमारा पूरा परिवार एकसाथ एक छत के नीचे रह रहा है, जो आज के समय में बहुत कम सम्भव है।हम सब परिवार के सदस्य एकसाथ घर का बना शुद्ध शाकाहारी भोजन कर रहे हैं। बाजार का भोजन करने वाले शौकीन भी घर का भोजन खाना सीख गए हैं।
महिलाएँ भी इन दिनों सौन्दर्य केन्द्र (ब्यूटी पार्लर)पर ना जाकर घर पर ही सादगी पूर्वक रह रही हैं।
घर के बड़ों को अपने बीवी-बच्चों व अन्य सदस्यों के साथ हँसने,बोलने तथा बैठने का समय मिल रहा है। जरा सोचिए कि क्या इस स्थिति ने ‘समय नहीं है’ कथन को पराजित नहीं कर दिया है।
‘जिंदगी में आराम कहां ?’,इस वाक्य को इस ‘तालाबंदी’ ने निरस्त कर दिया है। अब कुछ दिन सभी अपने घरों में अच्छे से आराम कर रहे हैं।
ऐसे ही चारों तरफ सफाई हो रही है। अपने घर व आस-पास के माहौल को भी साफ रखा जा रहा है ।
घर का खर्च कम हो रहा है,क्योंकि फालतू चीजें ‘तालाबंदी’ के चलते आ नहीं रही हैं।
इन विपरीत हालात में सबसे बड़ी बात कि हमारे देश की मृत्यु दर जो ४०० के आसपास सड़क दुर्घटना में हो रही थी,वह इस ‘तालाबंदी’ के चलते कम हो गई है।
अब बात सबसे अधिक जानलेवा प्रदूषण की तो,जिस प्रदूषण को सरकार कई कोशिशों के बावजूद भी नियंत्रित नहीं कर पाई,वह अपने-आप काबू हो गया है।
इतना ही नहीं,अपने पुराने खेलों-कैरम,लूडो, शतरंज आदि से बच्चे बूढ़े सभी परिचित हो गए हैं तो बाजार-सड़कें सूनी होने से चोरी, डकैती,हिंसा-मारपीट आदि भी कम हो गई है। सभी अपने घरों में शांति से बैठे हैं।
इधर,कोरोना की वजह से पूरे विश्व में सफाई अभियान चल रहा है,जिससे अन्य बीमारी के कीटाणु भी इस धरा से खत्म हो रहे हैं। इस महामारी के दौर में कालाबाजारी करने वालों को छोड़कर कोई भी रुपए-पैसे की बात नहीं कर रहा है,बल्कि सब एक-दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं,क्योंकि सबको जीवन और कमाए हुए धन की कीमत पता लग चुकी है। यह बातें हमें इंसानियत का बहुत बड़ा पाठ पढ़ा रही हैं।
ये भी गौर करने वाली बात है कि,बेटियां बार-बार अपने मायके ना जाकर सास,ससुर और पति बच्चों को समय दे रही हैं,रिश्ते निभा रही हैं।
ऐसे ही नौकरानी पर निर्भर रहने वाली महिलाएं स्वतः ही घर का सारा काम कर रही हैं तो लोग घर पर योगा करना भी सीख गए हैं। इन सब हालातों को देखकर कहना गलत नहीं होगा कि,एक विषाणु ऐसा भी कर दिखाएगा,यह कभी किसी ने सोचा नहीं था। तो दोस्तों,कोरोना के भयावह समय मे भी हमें अपना संयम-भरोसा नहीं खोना है। एक-दूजे का साथ देना है,नकारात्मक नहीं सकारात्मक सोच से इस समय को भी गुजारना है।
आज जब कोरोना ने इंसान को रोटी की अहमियत सिखा दी है और बेहिसाब फेंकने वाले भी इस संकट के समय में अब हिसाब से खाने लगे हैं तो हमें भी बहुत कुछ सोचना-समझना चाहिए,तथा पूर्णतः सकारात्मकता से इस महामारी के साथ लड़ना है।

परिचय-श्रीमती अर्चना जैन का वर्तमान और स्थाई निवास देश की राजधानी और दिल दिल्ली स्थित कृष्णा नगर में है। आप नैतिक शिक्षण की अध्यापिका के रुप में बच्चों को धार्मिक शिक्षा देती हैं। उक्त श्रेष्ठ सेवा कार्य हेतु आपको स्वर्ण पदक(२०१७) सहित अन्य सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। १० अक्टूबर १९७८ को बडौत(जिला बागपत-उप्र)में जन्मी अर्चना जैन को धार्मिक पुस्तकों सहित हिन्दी भाषा लिखने और पढ़ने का खूब शौक है। कार्यक्षेत्र में आप गृहिणी होकर भी सामाजिक कार्यक्रमों में सर्वाधिक सक्रिय रहती हैं। सामाजिक गतिविधि के निमित्त निस्वार्थ भाव से सेवा देना,बच्चों को संस्कार देने हेतु शिविरों में पढ़ाना,पाठशाला लगाना, गरीबों की मदद करना एवं धार्मिक कार्यों में सहयोग तथा परिवारजनों की सेवा करना आपकी खुशी और आपकी खासियत है। इनकी शिक्षा बी.ए. सहित नर्सरी शिक्षक प्रशिक्षण है। आपको भाषा ज्ञान-हिंदी सहित संस्कृत व प्राकृत का है। हाल ही में लेखन शुरू करने वाली अर्चना जैन का विशेष प्रयास-बच्चों को संस्कारवान बनाने के लिए हर सफल प्रयास जारी रखना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार और सभी को संस्कारवान बनाना है। आपकी दृष्टि में पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुन्शी प्रेमचन्द व कबीर दास जी हैं तो प्रेरणापुंज-मित्र अजय जैन ‘विकल्प'(सम्पादक) की प्रेरणा और उत्साहवर्धन है। आपकी विशेषज्ञता-चित्रकला,हस्तकला आदि में है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“हिन्दी हमारी मातृ भाषा है,हमारे देश के हर कोने में हिन्दी का प्रचार-प्रसार होना चाहिए। प्रत्येक सरकारी और निजी विद्यालय सहित दफ्तरों, रेलवे स्टेशन,हवाईअड्डा,अस्पतालों आदि सभी कार्य क्षेत्रों में हिन्दी बोली जानी चाहिए और इसे ही प्राथमिकता देनी चाहिए।