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अहसास

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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`कोराना` सम व्याधि बहु,मनुज नहीं अहसास।
हरित भरित सुष्मित प्रकृति,करता सत्यानासll

लोभ मोह में जिंदगी,छल कपटी बस झूठ।
प्रेम सत्य अहसास बिन,प्रकृति गयी नर रूठll

परहित रत रवि शशि अनल,धरा व्योम जल वायु।
नदी निर्झर सागर तरु,करे सृष्टि दीर्घायुll

पा विवेक मति चिन्तना,सर्वोत्तम अहसास।
अहंकार विषपान कर,मनुज करे ख़ुद नासll

छल बल चाहत शक्ति का,सत्ता पद सम्पत्ति।
कहाँ प्रीत अहसास मन,मानवता सद्वृत्तिll

प्रीति बने मन रविकिरण,इन्द्र वृष्टि औदार्य।
वचनव्रती रघुवंश सम,तभी मनुज था आर्यll

मीत परख होती तभी,फँसे बीच जंजाल।
हिंस्र जन्तु अहि फँस निकुंज,पा चंदन खुशहालll

धीर वीर गंभीर जो,शील त्याग गुण कर्म।
बिना राग निच्छल हृदय,दयावान् सत् धर्मll

उन्नति सुख सबको लहे,बनते मीत हजार।
परख तभी हो बन्धुता,विपदा मीत अपारll

करो नियंत्रण चाह पर,मन में रख विश्वास।
चाहत है सबसे बला,वशीकरण अभ्यासll

क्या जाने मन प्रीत वो,लालच रत दुर्भाव।
छल-बल सत्ता सम्पदा,क्या जाने समभावll

कशिश प्रीति अन्तस्थली,अर्पित भाव सुहास।
प्रीति ईश अरु प्रकृति से,परहित सुख अहसासll

प्रेम भक्ति सेवन वतन,सुखद सहोदर ब्रह्म।
रोगमुक्त मन व्याधि से,नव प्रकाश सुखमर्मll

बिलख रही कवितावली,आहत देख जमात।
इन्सानी अहसास बिन,खेल रहे ज़ज़्बातll

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥