एन.एल.एम. त्रिपाठी ‘पीताम्बर’
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
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बहारों की मल्लिका हूँ,मेरा अंदाज़ है मस्ताना,
गर ख्वाबों में आ जाऊं बना दूँ दीवाना।
गुल हूँ मैं गुलशन की शाख पर बैठूँ गुलशन का गुलज़ार हो जाना,
कली हूँ मैं नादाँ गुजर जाऊं जिधर से,महक राहों का जानाl
मेरी चाहत में जीते हैं आहें भरते हैं,जमाने में मुहब्बत की मैं हूँ जाने जाना,
मैं यारों की यारी हूँ,शमा रौशन हूँ परवाना।
मैं आरजू की शबनम हूँ इरादों की राहों का मैख़ाना,
मैं शराब का शबाब नशे का पैमाना।
आहों की आहट हूँ चाहत की चाँदनी,
मेरी मुस्कान पे दुनिया को है मर मिट जाना।
मैं हुस्न की हद हूँ इबादत इश्क मेरा चाहता,
हर जिंदगी की किस्मत हूँ,किसी के लिए खुदा की दुआओं का नज़राना।
कोई आहें भरता है किस्मत को तौबा करता है किसी की यादों में तराना,
प्यासी कली मैं सावन की,सागर को खोजती,पिया के दामन में सिमट है जाना।
मैं दौलत की दौलत हूँ जिंदगी का अफ़साना,
साँसों की धड़कन हूँ जीने का बहाना।
कई राज हूँ मैं,नाज़ हूँ मैं,तख्त और ताज हूँ,
मैं अरमानों की जंग के जाँबाज का बहाना।
कोई मेरे मिलने से जीता है क़ोई मेरी जुदाई के गम में जीता है,
मैं जिंदगी की ख़ुशी,गम जिंदगी जीने का फ़सानाll
परिचय–एन.एल.एम. त्रिपाठी का पूरा नाम नंदलाल मणी त्रिपाठी एवं साहित्यिक उपनाम पीताम्बर है। इनकी जन्मतिथि १० जनवरी १९६२ एवं जन्म स्थान-गोरखपुर है। आपका वर्तमान और स्थाई निवास गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) में ही है। हिंदी,संस्कृत,अंग्रेजी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री त्रिपाठी की पूर्ण शिक्षा-परास्नातक हैl कार्यक्षेत्र-प्राचार्य(सरकारी बीमा प्रशिक्षण संस्थान) है। सामाजिक गतिविधि के निमित्त युवा संवर्धन,बेटी बचाओ आंदोलन,महिला सशक्तिकरण विकलांग और अक्षम लोगों के लिए प्रभावी परिणाम परक सहयोग करते हैं। इनकी लेखन विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,नाटक,उपन्यास और कहानी है। प्रकाशन में आपके खाते में-अधूरा इंसान (उपन्यास),उड़ान का पक्षी,रिश्ते जीवन के(काव्य संग्रह)है तो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में भी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं। ब्लॉग पर भी लिखते हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-भारतीय धर्म दर्शन अध्ययन है। लेखनी का उद्देश्य-समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करना है। लेखन में प्रेरणा पुंज-पूज्य माता-पिता,दादा और पूज्य डॉ. हरिवंशराय बच्चन हैं। विशेषज्ञता-सभी विषयों में स्नातकोत्तर तक शिक्षा दे सकने की क्षमता है।
अनपढ़ औरत पढ़ ना सकी फिर भी,
दुनिया में जो कर सकती सब-कुछ।
जीवन के सत्य-सार्थकता की खातिर जीवन भर करती बहुत कुछ,
पर्यावरण स्वच्छ हो,प्रदूषण मुक्त हो जीवन अनमोल हो।
संकल्प यही लिए जीवन का,
हड्डियों की ताकत से लम्हा-लम्हा चल रही हूँ।
मेरी बूढ़ी हड्डियां चिल्ला-चीख कर्,
जहाँ में गूँज-अनुगूँज पैदा करने की कोशिश है कर रही,
बेटी पढ़ाओ,बेटी बचाओ,स्वच्छ राष्ट्र, समाज,
सुखी मजबूत राष्ट्र,समाज॥