सुरेन्द्र सिंह राजपूत हमसफ़र
देवास (मध्यप्रदेश)
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नीलिमा विवाह के पश्चात अपनी ससुराल के सारे रीति-रिवाज़ सम्पन्न होने के बाद पहली बार उस शहर में आई,जहाँ उसके पति बैंक अधिकारी थे। अच्छा बड़ा-सा बंगलेनुमा किराए का मकान था,सुख-सुविधा का सारा साज़-ओ-सामान था उस घर में। उसके पति ने विवाह के कुछ महीने पहले ही घर-गृहस्थी का विस्तार होते देख वह बंगला किराए पर लिया था। दोनों पति-पत्नी का जीवन बहुत सुखमय था। नीलिमा को एक बहुत बड़ा शौक़ था,उसे नई-नई तरह की रंग-बिरंगी चिड़िया पालने का शौक़ था। अपने पिता के यहाँ उसने २ पिंजरों में कई तरह की चिड़िया पाल रखी थी। उन्हें समय-समय पर दाना-पानी देती थी और उनके साथ वह भी खूब चहचहाकर बातें करती थीं। शायद इस प्रेम की ज़रूरत मनुष्य ही नहीं,मूक पशु-पक्षियों को भी रहती है। उसके द्वारा पाली हुई सभी चिड़िया उसकी ख़ास सहेलियों से भी बढ़कर थीं। उसका बस चलता तो,वह उन चिड़ियों के पिंजरों को भी ससुराल साथ ले जाती। तभी तो वह अपनी छोटी बहिन और माँ को ख़ूब समझा-बुझाकर निर्देश देकर आई थी कि उसके जाने के बाद वह इन चिड़ियों का खूब ध्यान रखें,उन्हें समय-समय पर दाना-पानी देती रहें,लेकिन परमेश्वर ने इस संसार में अलग-अलग तरह के इंसान बनाए हैं। उसी प्रकार उनकी रुचियाँ भी अलग- अलग बनाई हैं।
नीलिमा की मम्मी तो घर के कामों में व्यस्त रहती थीं,उसकी छोटी बहिन रिंकी सुबह-शाम चिड़ियों को दाना- पानी रख देती थी, लेकिन उसे इन चिड़ियों के पालन में रत्तीभर भी रुचि नहीं थी। बस मज़बूरी में वह अपनी बड़ी दीदी के आदेशों का पालन करके उन्हें दाना-पानी दे देती थी।
परम पिता परमेश्वर की यह सृष्टि बड़ी अज़ीब है,यहाँ पशु-पक्षी भी अपने से प्यार करने वाले मालिक को पहचानते हैं। जब तक नीलिमा वहाँ थी,वह पिंजरे में रहकर भी उसके प्यार से ख़ुश थीं। इधर सब चिड़िया तरह-तरह की आवाज़ निकालती,उधर नीलिमा भी उनकी आवाज़ सुनकर ख़ूब ख़ुश होती और वह भी चिड़ियों की तरह ख़ूब चहकती थी। जब से नीलिमा गई चिड़िया उदास रहने लगीं,दाना चुगना भी बहुत कम कर दिया। एक तो पिंजरे में थीं,दूजा दिल से प्यार करने वाला चला गया। दिनों-दिन चिड़ियों की सेहत गिरने लगी,अब वह पहले की तरह कलरव भी नहीं करती थीं।
इधर नीलिमा को भी अपनी चिड़ियों की खूब याद सताती थी,वह भूमिका बनाकर अपने पति से बात करने की सोच रही थी,पर हिम्मत नहीं कर पा रही थी कि कैसे बोले ? कहीं वे नाराज़ न हो जाएं ? कहेंगे,अच्छा शौक़ पाला है तुमने…। जब नीलिमा अपने घर से बिदा होने वाली थी,वह अपनी चिड़ियों के पास गई और उन्हें ख़ूब देर तक जी भर के निहारती रही,उनसे बातें करती रही। अपने पति से वह चिड़ियों वाली बात तो नहीं कह पाई,लेकिन एक दिन मौक़ा पाकर वह बोली कि-आपकी शनिवार रविवार की छुट्टी है,तो क्यों न मेरे घर हो आते हैं। मम्मी-पापा हमको बुला भी रहे थे।’ उसके पति ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया। बस फिर क्या था, शनिवार को सुबह से कार द्वारा दोनों नीलिमा के घर पहुँच गए। घर पहुँचते ही नीलिमा सबसे पहले चिड़ियों के पास गईं,लेकिन यह क्या! सभी चिड़िया पहले जैसी तंदरुस्त व प्रसन्नचित्त नज़र नहीं आई। अपनी मालकिन को देखकर वह थोड़ा चहचहाई जरूर,लेकिन पहले जैसी बात नहीं थी। नीलिमा निर्णय ले चुकी थी कि,अब वह इन्हें आज़ाद कर देगी। उसे यह बात समझ में आ चुकी थी कि, मनुष्य हो या पक्षी,प्रेम और आज़ादी के बिना उनका जीवन नीरस है। और वह चिड़ियों के पिंजरों को लेकर खुले उपवन में पहुँच गई,अन्तिम बार उसने चिड़ियों को खूब निहारकर देखा,उनसे बातें की और पिंजरे का द्वार खोल दिया…बोली,-‘जाओ प्यारी बहिनों,तुम आज़ाद हो। अपना जीवन अपने ढंग से जियो,मेरा और तुम्हारा साथ इतने ही दिन का था…।’
नीलिमा आज बहुत उदास थी,लेकिन उसके मन में चिड़ियों को आज़ाद करने की खुशी थी। चिड़ियों ने अपनी मालकिन को इतना प्रेम देने और आज़ाद करने का आभार किया, शायद कुछ दुआएँ दी और उड़ गईं खुले आकाश में…।
परिचय-सुरेन्द्र सिंह राजपूत का साहित्यिक उपनाम ‘हमसफ़र’ है। २६ सितम्बर १९६४ को सीहोर (मध्यप्रदेश) में आपका जन्म हुआ है। वर्तमान में मक्सी रोड देवास (मध्यप्रदेश) स्थित आवास नगर में स्थाई रूप से बसे हुए हैं। भाषा ज्ञान हिन्दी का रखते हैं। मध्यप्रदेश के वासी श्री राजपूत की शिक्षा-बी.कॉम. एवं तकनीकी शिक्षा(आई.टी.आई.) है।कार्यक्षेत्र-शासकीय नौकरी (उज्जैन) है। सामाजिक गतिविधि में देवास में कुछ संस्थाओं में पद का निर्वहन कर रहे हैं। आप राष्ट्र चिन्तन एवं देशहित में काव्य लेखन सहित महाविद्यालय में विद्यार्थियों को सद्कार्यों के लिए प्रेरित-उत्साहित करते हैं। लेखन विधा-व्यंग्य,गीत,लेख,मुक्तक तथा लघुकथा है। १० साझा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है तो अनेक रचनाओं का प्रकाशन पत्र-पत्रिकाओं में भी जारी है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में अनेक साहित्य संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। इसमें मुख्य-डॉ.कविता किरण सम्मान-२०१६, ‘आगमन’ सम्मान-२०१५,स्वतंत्र सम्मान-२०१७ और साहित्य सृजन सम्मान-२०१८( नेपाल)हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्य लेखन से प्राप्त अनेक सम्मान,आकाशवाणी इन्दौर पर रचना पाठ व न्यूज़ चैनल पर प्रसारित ‘कवि दरबार’ में प्रस्तुति है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-समाज और राष्ट्र की प्रगति यानि ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, मैथिलीशरण गुप्त,सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ एवं कवि गोपालदास ‘नीरज’ हैं। प्रेरणा पुंज-सर्वप्रथम माँ वीणा वादिनी की कृपा और डॉ.कविता किरण,शशिकान्त यादव सहित अनेक क़लमकार हैं। विशेषज्ञता-सरल,सहज राष्ट्र के लिए समर्पित और अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये जुनूनी हैं। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-
“माँ और मातृभूमि स्वर्ग से बढ़कर होती है,हमें अपनी मातृभाषा हिन्दी और मातृभूमि भारत के लिए तन-मन-धन से सपर्पित रहना चाहिए।”