राजू महतो ‘राजूराज झारखण्डी’
धनबाद (झारखण्ड)
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आजकल हमारे चारों ओर का वातावरण अपराधमय हो गया है। वर्तमान समय में किसी भी दिन के समाचारों पर ध्यान दिया जाए तो अपराधिक समाचार ही अधिक देखने व सुनने को मिल रहा है। विश्वास,सत्य,निष्ठा,कर्तव्य व परोपकार जैसे शब्द अब बोलचाल एवं सजावट की वस्तु प्रतीत होने लगें हैं। सत्यनिष्ठ व्यक्ति आज बिरले ही दिखते हैं,और दिखते भी हैं तो लोग उनकी कद्र नहीं करते।
हालांकि,यह सत्य है कि आज भी लोग अपराध को बुरा मानते हैं। अपराधी को उसके अपराध के अनुसार दंड देने का प्रावधान भी संविधान में है। लोग दूसरे के अपराध की और तो ध्यान देते हैं,परंतु अपने स्वार्थ और लोभ पर काबू नहीं रख पाते। सचमुच अपराधी को दंड देना न्याय की बात है,परंतु केवल दंड ही काफी नहीं है। हमें इसकी जड़ तक पहुंचना आवश्यक है। हमें अपने-आपसे,समाज से,देश से यह सवाल अवश्य करना चाहिए कि क्या हैं इसके कारण ? अपराध क्यों ? अपराध क्यों ?
इस सवाल का जवाब ढूंढते-ढूंढते इस तथ्य तक पहुंचे कि,इसका कारण हमारी बदलती संस्कृति एवं लोगों का रहन-सहन है। आज लोग शिक्षा की ओर ध्यान देते हैं,परंतु संस्कार की ओर नहीं,लोग काम की ओर ध्यान देते हैं परंतु सतकाम की ओर नहीं। यही नहीं,लोग सेवा की और भी ध्यान देते हैं परंतु नि:स्वार्थ सेवा की ओर नहीं।
आज लोग व्यस्त भी बहुत अधिक हैं,परंतु केवल पैसों के लिए,सम्मान के लिए नहीं। अब एक प्रश्न आता है कि प्राचीन काल में तो ऐसा माहौल नहीं था। उस समय चारों और सत्य,संस्कार,परोपकार,सम्मान,सेवा सब कुछ नि:स्वार्थ भाव से था। फिर ऐसा बदलाव क्यों,इसके पीछे जिम्मेवार कौन व्यक्ति है ? क्या इसका जिम्मेवार देश है ? नेता हैं ? समाज है ? अथवा स्वयं हम ही हैं ?
बहुत ही गहराई एवं अंतर्मन से सोचने पर जवाब मिला कि,इसका कारण हम सब ही हैं। पहले परिवार संयुक्त हुआ करता था। इसमें बच्चे भी दादा,दादी,चाचा,चाची सबके साथ रहते एवं सबके संस्कारों गुणों को ग्रहण करते मिल-जुल कर रहने की प्रेरणा पाते। बच्चे आस-पड़ोस के बच्चों एवं सहपाठियों के साथ खेलते कूदते थे। इससे भाईचारा बढ़ता था,परंतु आज एकल परिवार की प्रथा हैl इसमें बच्चों का जीवन लगभग एकांत-सा हो गया है। उस पर पढ़ाई का दबाव आ गया है। माता-पिता अपने कामों में व्यस्त हैं। बच्चों का खेल भी मोबाइल,कम्प्यूटर और घर तक ही सीमित रह गया है। बच्चे और अभिभावक शुरू से ही पढ़ाई का परिणाम अच्छे संस्कार को नहीं,बल्कि ऊंचे पद और मोटी कमाई को हासिल करना समझने लगे हैं। ऐसे में बच्चे बड़े होकर संस्कार को छोड़ पैसों की ओर अपना रुख मोड़ लेते हैं,और यहीं से अपराध जन्म लेता है।
यह नहीं कहता कि,यह प्रत्येक परिवार में होता है। आज भी अच्छे एवं संस्कारी लोग हैं,तभी तो दुनिया चलायमान है,परंतु यह सत्य है कि अधिकतर जगहों पर ऐसा ही होता है। अतः,हमें अपने-आपसे नित्य यह प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए कि,अपराध की जड़ कहाँ है ? अपराध क्यों ? अपराध क्यों ?
परिचय–साहित्यिक नाम `राजूराज झारखण्डी` से पहचाने जाने वाले राजू महतो का निवास झारखण्ड राज्य के जिला धनबाद स्थित गाँव- लोहापिटटी में हैL जन्मतारीख १० मई १९७६ और जन्म स्थान धनबाद हैL भाषा ज्ञान-हिन्दी का रखने वाले श्री महतो ने स्नातक सहित एलीमेंट्री एजुकेशन(डिप्लोमा)की शिक्षा प्राप्त की हैL साहित्य अलंकार की उपाधि भी हासिल हैL आपका कार्यक्षेत्र-नौकरी(विद्यालय में शिक्षक) हैL सामाजिक गतिविधि में आप सामान्य जनकल्याण के कार्य करते हैंL लेखन विधा-कविता एवं लेख हैL इनकी लेखनी का उद्देश्य-सामाजिक बुराइयों को दूर करने के साथ-साथ देशभक्ति भावना को विकसित करना हैL पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचन्द जी हैंL विशेषज्ञता-पढ़ाना एवं कविता लिखना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति आपके विचार-“हिंदी हमारे देश का एक अभिन्न अंग है। यह राष्ट्रभाषा के साथ-साथ हमारे देश में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसका विकास हमारे देश की एकता और अखंडता के लिए अति आवश्यक है।