अमल श्रीवास्तव
बिलासपुर(छत्तीसगढ़)
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सुन्दर तन-मन,बुद्धि मिली थी,
पर हमने यह क्या कर डाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला॥
तन भी जर्जर,मन भी दूषित,
भाव सभी कुंठित हो जाते।
चीत्कार कर रही आत्मा,
फिर भी लत से बाज न आते।
युद्ध,महामारी,अकाल ने,
जितना कष्ट नहीं पहुँचाया।
उससे ज्यादा सिर्फ नशे ने,
दुनिया में आतंक मचाया।
नहीं बचा है कोई कोना,
सारा विश्व हुआ मतवाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
कितने सत्कर्मों के फल से,
यह मानव का जीवन पाया।
प्रभु के राजकुँवर बनने का,
कैसा सुन्दर अवसर आया।
ईश्वर है यदि शान्ति सिंधु तो,
हम फिर शान्ति-पुत्र कहलाए।
सुख का उदधि कहें उसको तो,
हम सब सुख के सुवन सुहाए।
मानव की गौरव गरिमा को,
हमने तहस-नहस कर डाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
सत्य,शील,करुणा का सागर,
मान प्रभु को सब भजते हैं।
पर क्यों अपने उर अंतस में,
ये गुण-तत्व नहीं दिखते हैं।
जन्म-जन्म की यात्राओं से,
कुछ तो कालिख जम जाती है।
सत्य-न्याय के अंगारों में,
परत राख की चढ़ जाती है।
कालिख लगी हुई चादर को,
और अधिक मैली कर डाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
मटन,चिकन,बिरयानी को,
हमने भोजन का भाग बनाया।
पेट हो गया है मुर्दाघर,
कितनी लाशों को दफनाया।
हम जीवों के रक्षक थे पर,
आज स्वयं भक्षक बन बैठे।
कितनों को हलाल कर डाला,
कितनों की गर्दन हैं ऐठे।
आए थे हम क्या-क्या करने ?
लेकिन क्या से क्या कर डाला ?
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
किया कलेजा छलनी हमने,
बीड़ी,सिगरेट,गांजा पीकर।
मुख को किया विषाक्त गुड़ाखू,
गुटका,तंबाखू खा-खाकर।
भांग,धतूरा,ठर्रा,व्हिस्की,
हड़िया,ताड़ी,बियर,न क्या-क्या ?
दुराचरण,दुर्भाव,दुष्टता,
विषय,वासना,क्रोध,इर्ष्या।
नशा चढ़ा जब दिल-दिमाग में,
सुबह-शाम दिखती मधुशाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
देशी और विदेशी मदिरा,
की,बोतल हम लगे चढ़ाने।
कोकिन,ब्राउन शुगर,हेरोइन,
चरस,अफीम लगे महकाने।
मधुर तान की जगह हमेशा,
हमने कर्कश वाणी बोली।
पावन दृष्टि मिली थी हमको,
पर हमने मादकता घोली।
खुद की बरबादी का खुद ही,
जाने कैसा मार्ग निकाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
भोगवाद को सफल मानकर,
उसमें ही हम फूल गए हैं।
सादा जीवन-उच्च विचारों,
की परिभाषा भूल गए हैं।
पीड़ा,पतन,पराभव की यह,
बीमारी फैली है जब से।
है इतिहास साक्षी अपना,
यह दुर्दशा हुई है तब से।
आओ वृत्ति बदलकर देखें,
फैला चारों ओर उजाला।
दुर्व्यसनों की लत में पड़कर,
पीते रोज जहर का प्याला…॥
परिचय-प्रख्यात कवि,वक्ता,गायत्री साधक,ज्योतिषी और समाजसेवी `एस्ट्रो अमल` का वास्तविक नाम डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव हैL `अमल` इनका उप नाम है,जो साहित्यकार मित्रों ने दिया हैL जन्म म.प्र. के कटनी जिले के ग्राम करेला में हुआ हैL गणित विषय से बी.एस-सी.करने के बाद ३ विषयों (हिंदी,संस्कृत,राजनीति शास्त्र)में एम.ए. किया हैL आपने रामायण विशारद की भी उपाधि गीता प्रेस से प्राप्त की है,तथा दिल्ली से पत्रकारिता एवं आलेख संरचना का प्रशिक्षण भी लिया हैL भारतीय संगीत में भी आपकी रूचि है,तथा प्रयाग संगीत समिति से संगीत में डिप्लोमा प्राप्त किया हैL इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स मुंबई द्वारा आयोजित परीक्षा `सीएआईआईबी` भी उत्तीर्ण की है। ज्योतिष में पी-एच.डी (स्वर्ण पदक)प्राप्त की हैL शतरंज के अच्छे खिलाड़ी `अमल` विभिन्न कवि सम्मलेनों,गोष्ठियों आदि में भाग लेते रहते हैंL मंच संचालन में महारथी अमल की लेखन विधा-गद्य एवं पद्य हैL देश की नामी पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती रही हैंL रचनाओं का प्रसारण आकाशवाणी केन्द्रों से भी हो चुका हैL आप विभिन्न धार्मिक,सामाजिक,साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े हैंL आप अखिल विश्व गायत्री परिवार के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। बचपन से प्रतियोगिताओं में भाग लेकर पुरस्कृत होते रहे हैं,परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि प्रथम काव्य संकलन ‘अंगारों की चुनौती’ का म.प्र. हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा प्रकाशन एवं प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुन्दरलाल पटवा द्वारा उसका विमोचन एवं छत्तीसगढ़ के प्रथम राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय द्वारा सम्मानित किया जाना है। देश की विभिन्न सामाजिक और साहित्यक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त आपको सम्मानों की संख्या शतक से भी ज्यादा है। आप बैंक विभिन्न पदों पर काम कर चुके हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. अमल वर्तमान में बिलासपुर (छग) में रहकर ज्योतिष,साहित्य एवं अन्य माध्यमों से समाजसेवा कर रहे हैं। लेखन आपका शौक है।