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पिता के परिश्रम-प्रेरणा की महती भूमिका

सविता धर
नदिया(पश्चिम बंगाल)
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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

कहा गया है कि,’होनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यानि कि अच्छे माता-पिता की अच्छी संतान ही होती है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि,एक परिवार में बच्चों की देखभाल करने के लिए माता-पिता दोनों की बराबर भूमिका है। पहले संयुक्त परिवार होते थे,उसमें घर का वयोवृद्ध मुखिया होता था। वही सब-कुछ निर्णय लेता था,किंतु वर्तमान समय में एकल परिवार होने से महिलाओं की वजह से पिता ही घर की जिम्मेदारी लेता है। माता बच्चे को बहुत समय दे सकती है,किंतु आधुनिक युग में माता भी नौकरीपेशा होती है,ऐसी हालत में दोनों को कार्य बराबर-बराबर करना पड़ता है।
पुनश्चः कि,महिलाओं में अधिक धीरज होता है,तभी वह सब कुछ संभाल लेती है,किंतु परिवार में पिता का भी फर्ज है। वो अपने बच्चों के प्रति अच्छा व्‍यवहार करे,खुद अनुशासित रहे और बच्‍चों से प्रेम पूर्ण व्‍यवहार करे। बच्‍चे की हर मांग को पूरा करने से पहले देख ले कि,वह उचित है या नहीं ? क्योंकि पिता खून-पसीना एक करके जो कुछ काम करेगा, बच्चा उसका सदुपयोग कर रहा है कि नहीं ?,इसे समझना आवश्यक है। पिता अपना एक आदर्श बच्चे के सामने रखे।
आधुनिक युग में बच्चे बहुत अभद्र होते जा रहे हैं, इसकी वजह माता-पिता ही हैं। माता-पिता में सहिष्णुता की कमी है। बच्चे की हर मांग को पूरा कर देते हैं,और बच्चा जिद्दी हो जाता है। बच्चों की हर नाजायज मांग को पूरा नहीं करें। बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए पिता को अनेक त्याग करना है। हर परिस्थिति में पिता बच्चों को धीरज से और प्रेम से बताए कि,पैसे और समय को बरबाद नहीं करें। संतान अच्छे कार्य में जुटी रहे,स्वस्थ रहे और मानसिक विकास करे। परिवार तथा देश को उन्नति के शिखर पर ले जाए। एक अच्छा नागरिक बने और देश का मान रखे।
आज बेटियाँ,बेटों से भी बेहतर कर रही है।इसलिए पिता कभी बेटी की अवहेलना न करे,वरन उसमें जो क्षमता हो,उनको उन्नत करने का प्रयास करे और उसकी शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दे। पिता परिवार का प्रधान व्यक्ति होता है,इसलिए वो अपना आचारण ठीक रखकर बच्चों की देखभाल करे। यदि हम किसी की सफलता का समाचार पढ़ते हैं,तो उसके पीछे पिता का ही अधिक योगदान होता है। पिता,बच्चों की आर्थिक रूप से सहायता करके बच्चों में जो छिपी संभावनाएं हैं,उन्हें विकास का मौका दे,बाद में वे बच्चे पिता का ही नाम रोशन करेंगे।
जिस तरह परिवार में बच्चों के लिए माता को बहुत कुछ त्याग करना पड़ता है,उसी तरह पिता को भी परिवार का भरण-पोषण करने के साथ-साथ बच्चों के प्रति समान व्यवहार करना चाहिए। बेटा हो या बेटी,दोनों के साथ निष्पक्ष बर्ताव होना चाहिए,नहीं तो बच्चों के मन में अशांति होने लगती है और भाई-बहन के सम्बन्ध में कटुता आने लगती है।
परिवार में बात आदर्श की इसलिए भी कि,आदर्श नहीं होने से परिवार में सहयोग की भावना विलुप्त होने लगती है। पारिवारिक विघटन होने लगता है, तब बच्चे पिता को सम्मान नहीं देते हैं। इसलिए पिता को बच्चों के सामने एक अच्छा ‌आदर्श रखना चाहिए।
कहना गलत नहीं होगा कि,जन्म देने से ही कोई पिता की पदवी नहीं पा जाता है। पिता का कर्तव्य है कि वह अपनी संतान को एक अच्छा और समर्थ नागरिक बनाए। पिता चाहे निर्धन हो या धनी, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। आप अपनी परिधि के अनुभव से अपने बच्चों का भरण-पोषण उनको भविष्य-जीवन के लिए तैयार करें,ताकि वो अपने परिवार,समाज और देश का नाम गौरवान्वित करें।
निष्कर्ष यही है कि,हम इतिहास के पन्ने उलटकर देखें या वर्तमान समय में किसी की किसी भी क्षेत्र में उपलब्धि-उसमें पिता का ही परिश्रम,त्याग और प्रेरणा होती है। एक सफल पिता अपने बच्चों में अपने सद्गुणों का रोपण करें और संतान में अपना प्रतिबिंब देखे।

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