शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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मेरे देश का किसान स्पर्धा विशेष…..

हमारे देश के कृषक भी ऋृषि हैं कृषक भी तप करते हैं तपती धूप में,बारिश में। आंधी,तूफान व बाढ़ से जूझता है,अपने लहलहाते खलिहानों को प्रकृति की आपदाओं में तहस-नहस होते देख शांत भाव से देख कभी हौंसला नहीं गंवाया,न ही प्रकृति सौंदर्य को निहारने,संवारने की लालसा से दूर हो पाता है।
हाल ही में,कृषक के मूल स्वभाव से जोड़ने का प्रयास करते हुए किसानों का उद्धार सरकार के द्वारा किया गया,लेकिन किसान हित में बनाए कानूनों के विरोध में किसानों द्वारा सड़कें घेर कर वर्षभर धरना दिया गया। अंततः कृषक कानून सरकार द्वारा वापिस लेना,किसी नजरिए से बहुत ही घिनौने कृत्य के समान भी देखा गया। इस दौरान सामान्य जन के मन में अनगिनत प्रश्नों ने जन्म लिया मसलन- “क्या किसान अपनी खेती-बाड़ी नहीं कर रहे ? तो फिर खेत कैसे हरे-भरे लहलहा रहे हैं ? वो कौन से किसानों के खातों में २ हज़ार महीने का सरकारी धन जमा हो रहा है ? और ये किसान कौन से हैं ? जिनके पास मोटरसाइकल है, कारें हैं,ट्रैक्टर हैं,ओबीसी,एसटी आदि से संबंधित तक़रीबन सारी योजनाओं की सुविधा है। बीज- खाद के लिए अनुदान है,बिजली-पानी खेतों के लिए मुफ़्त,फसल बीमा योजना है। पहले वाली सरकार भी यही सब सुविधा प्रदान करती थी और ये सरकार भी सारी योजना इन किसानों के लिए बनाती है। ऋण लेने की आसान प्रक्रिया भी किसानों को ही दी जा रही है और वह भी कम ब्याज दर पर और ऋण चुकता न करने पर सरकार ही माफ़ कर देती है। आयकर व अन्य करों में भी शत्- प्रतिशत छूट है किसानों को। और ठीक कृषकों से अलग समस्या है साधारण जनों की।
जो अमूमन कहते हैं…हमें तो कोई भी सब्ज़ी १०० रूपए किलो से कम नहीं मिलती,न ही गेहूँ ३४-३५ रुपए किलो से कम मिलता है,न ही चावल गुणवत्ता के हिसाब से ४० रुपए से लेकर १८०-२१० रुपए से कम मिलते हैं। और तो और आज तक किसी भी सरकार ने कोई योजना बनाई है। दलाल किसान से ५० पैसे प्रति किलो से टमाटर ख़रीद कर आज ४० रुपए प्रति किलो बेचते हैं। सरकार ही किसानों से ५० पैसे प्रति किलो की दर से ख़रीदकर १ रुपए किलो के मूल्य से बेच सकती है क्या ? ये प्रश्न हमारे देश की कृषि व्यवस्था पर आरोपों की जड़ें जमाते ही हैं।
सामान्य लोगों को तो ऋण लेने के लिए भी हज़ारों चक्कर लगाने व नियम-क़ायदे के अनुसार चलना पड़ता है। विपत्ति आने पर बदनामी के साथ ऋण ब्याज दर ब्याज भरना पड़ता है। आयकर व अन्य कर के साथ कोई वस्तु ख़रीदने पर भी कर देना पड़ता ह। न तो ऐसे वर्ग के पास ज़मीन है,न ही रहने को घर और न ही कोई कार,मोटरसाइकिल जैसे वाहन। अब आप ही बताएं,किसने किस पर हद कर दी!
यह तो ऐसा लगता है सबने मिलकर मध्य वर्ग पर ही हद कर दी,जो सम्मान से व परिश्रम करके समाज व राष्ट्र को धीरे-धीरे उन्नत करता है और एक चूं की आवाज भी नहीं निकालता। वास्तव में सरकारों को उस जनता के बारे सोचना चाहिए।
वास्तव में,किसानों को अपने नए संसाधनों को अपनाने के साथ कृषि करने के नए तरीकों को भी अपनाना होगा। शिक्षित कृषक ही अपनी आय में स्वत: वृद्धि कर सकता है। किसान की युवा पीढ़ी को ही कृषि संबंधी ज्ञान देश-विदेश से अर्जित करना आवश्यक है,न कि,सरकारी योजनाओं से लाभ प्राप्त करने के लिए धरने जैसी घटनाओं में शामिल होकर अपने व देश को हानि पहुंचाने की योजना को साकार करना।
अत: अब देखना यही है कि सच में,हमारे देश के किसानों की युवा पीढ़ी कौन-सी दिशा अपनाती है ? सरकार को किसानों की युवा पीढ़ी को नए तौर- तरीकों की शिक्षा व्यवस्था के अंतर्गत विदेश में कृषि शिक्षा व अनुसंधान के लिए जागरूक करना चाहिए,साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर खर्च में कमी लाना भी ध्येय होना चाहिए।