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२ या ३ पंक्तियों की लघुकथा भी प्रभावशाली

सम्मेलन…

पटना (बिहार)।

लघुकथा की एक अपनी खासियत है कम शब्दों में मारक प्रभाव डालना। लघुकथा का लघु कहानी से अलग अस्तित्व है। लघुकथा २ या ३ पंक्तियों की भी प्रभावशाली हो सकती है, अगर हम कह सकें तो। कम शब्दों में कहने की कला हमें आती है तो हम सही में लघुकथाकार हैं। समाज की समस्याओं को दर्शाना भी हमारा दायित्व है। अंधविश्वास, कुरीतियों को भी लघुकथा के माध्यम से उजागर करना सफलता का परिचायक है।
यह बात मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री और लेखिका डॉ. अलका वर्मा ने आभासी लघुकथा सम्मेलन की सार्थकता को रेखांकित करते हुए कही। भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में इस सम्मेलन का संचालन करते हुए संयोजक साहित्यकार सिद्धेश्वर ने डॉ. वर्मा की कृति ‘कही अनकही’ में प्रकाशित लघुकथाओं पर लिखी गई अपनी डायरी प्रस्तुत करते हुए कहा कि, ‘कही अनकही’ के माध्यम से व्यक्ति, समाज और परिवार के कईf प्रसंगों को अपनी लघुकथाओं में समेटा है, जो लघुकथा के प्रति उनकी जीवंतता का परिचय देता है।
अध्यक्षीय टिप्पणी देते हुए वरिष्ठ कवि और लेखक डॉ. निर्मल कुमार डे ने कहा कि, ऑनलाइन लघुकथा पाठ की शुरुआत करने का श्रेय सिद्धेश्वर जी को जाता है और लघुकथा के विकास के लिए ऐसा प्रयास जरूरी भी है। आजकल अधिक लंबी लघुकथाएं लिखी जा रही है, जो लघु कहानी तो हो सकती है, लघुकथा नहीं।
उन्होंने पठित लघुकथाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी भी दी। सम्मेलन में श्री डे और डॉ. वर्मा ने कुछ लघुकथाओं का पाठ किया, जिसे काफी लोगों ने सराहा।
परिषद की उपाध्यक्ष राज प्रिया रानी ने बताया कि, प्रदीप कुमार ने ‘रंग’, रजनी श्रीवास्तव अनंता ने ‘साझा सपने’, इंदू उपाध्याय ने ‘रेवड़ी’, सपना चंद्रा ने ‘आत्मा की मुक्ति’ और सिद्धेश्वर ने ‘अपना-अपना हिस्सा’ सहित अन्य ने भी पाठ किया। सारी लघुकथाएं सारगर्भित और प्रासंगिक रहीं।

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