हेमराज ठाकुर
मंडी (हिमाचल प्रदेश)
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जमीनी युद्ध अब आसमानी हुआ,बढ़ गया और भी खतरा है,
रूस-यूक्रेन के बुद्धि-विवेक को,क्या महाविनाश ने जकड़ा है ?
धरती हो गई लहूलुहान सी,फिर भी कैसा हठ यह पकड़ा है ?
न यूक्रेन है माने,न रूस है रुकता,बस अपनी हठ पे अकड़ा है॥
जेलेंसकी-पुतिन को कौन समझाए ? कि नर संहार न अच्छा है,
दोनों ही बालिग हैं,सब समझ रहे हैं,इनमें से कोई भी न बच्चा है।
फिर भी न जाने क्यों जिद पकड़े हैं,बस ‘मैं ही ठीक हूँ’ क्यों रटा है ?
सुलह की बात कोई करता ही कहां है,नफरतों का सोता क्यों फटा है ??
ये जो लगे हैं खेल खेलने,भीतर ही भीतर से,दोस्त नहीं खिलाड़ी हैं,
घर दूसरों का फूंक कर,अपना उल्लू सीधा करने वाले कहां अनाड़ी हैं ?
दूसरों के कहे पर कइयों ने,अपने घर की,माली हालत बिगाड़ी है,
ये तुरप का पता फेंकने वाले हमदर्द नहीं जी,मंझे हुए जुआरी हैं॥
हथियारी खेप घृत युद्धाग में डालते,देश कहां चाहते विश्व शान्ति हैं ?
मानवता के हत्यारों को दोस्त समझना,बुद्धिमता नहीं बस भ्रान्ति है।
यूक्रेन-रूस के हर गलियारे में,उपजी वीभत्स जुगुप्सी क्रान्ति है,
इस अकाल प्रलय के जलजले में,तबाह होती जनता निर्दोष सांची है॥