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फागुन

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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फाग बिना फगुनवा बचे है,
कुमुदोत्सव की बिदाई है
कुसुमोत्सव मदनोत्सव ले,
रंगीली होली आयी है।

कवि जन-मन छवि टेसू झूले,
रंग भीगी रोशनायी है
कागज हो गए गुलाल-गुलाल,
लेखनी नयी तरुणायी है।

धरती ओढ़ी चुनर बसंती,
होली में ठिठोली छायी है
गोरी गाल गुलाल का शोर,
कोयलिया कुक इतरायी है।

चाँद सजा कर बैठा महफ़िल,
तारों ने धूम मचाई है
चाँदनी चँचल खिल-खिल नाचे,
ऋतु सुहानी वाली आयी है।

डाली बहका बेला लहकी,
किसने यह मस्ती बुलाई है
हौले-हौले से पवन चले,
फूलकर फूल लहरायी है।

ठहरो ओ! फागुन की संध्या,
नभ को मेंहदी रचायी है।
कांपते कोमल पीपल पत्ते,
खट्टी बेरी गदरायी है॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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