फिजी यात्रा:विश्व हिंदी सम्मेलन..
भाग-३
जिस वाद्य की चर्चा मैंने पिछली जानकारी में की थी, उसे बजाने की इच्छा को मैं भी दबा नहीं पाया। मैं जानता हूँ मैं कोई भी वाद्य नहीं बजा पाता। न ताल का ज्ञान है, ना सुर का, लेकिन कभी-कभी कुछ चीजें बच्चों की तरह मस्तीखोरी में हो जाती है। यह उपक्रम भी कुछ वैसा ही था।