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गंतव्य की ओर

तारा प्रजापत ‘प्रीत’
रातानाड़ा(राजस्थान) 
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चल रही हूँ
निरन्तर,
चाहे अवरुद्ध हो
रास्ते जीवन के,
कभी लड़ती हूँ
वक़्त से,
कभी मन बच्चे को
फुसलाती हूँ,
थक जाती हूँ
पर हारती नहीं।

कुछ पल
ईश्वर के,
चिंतन की गोद में
सिर रख कर,
सुस्ता लेती हूँ
फिर चल पड़ती हूँ।
उमंग, उत्साह और,
नई ऊर्जा के साथ
अपने गंतव्य की ओर॥

परिचय– श्रीमती तारा प्रजापत का उपनाम ‘प्रीत’ है।आपका नाता राज्य राजस्थान के जोधपुर स्थित रातानाड़ा स्थित गायत्री विहार से है। जन्मतिथि १ जून १९५७ और जन्म स्थान-बीकानेर (राज.) ही है। स्नातक(बी.ए.) तक शिक्षित प्रीत का कार्यक्षेत्र-गृहस्थी है। कई पत्रिकाओं और दो पुस्तकों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं,तो अन्य माध्यमों में भी प्रसारित हैं। आपके लेखन का उद्देश्य पसंद का आम करना है। लेखन विधा में कविता,हाइकु,मुक्तक,ग़ज़ल रचती हैं। आपकी विशेष उपलब्धि-आकाशवाणी पर कविताओं का प्रसारण होना है।

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