वैश्विक ई-संंगोष्ठी-भाग २…
◾ब्रिगेडियर ए. के. सिंह (मुंबई)
-मेरा यह मानना है कि देश की भाषाएँ ही देश की आत्मा हैं। देश केवल भौगोलिक सीमाओं से नहीं बनता, बल्कि अपने ज्ञान-विज्ञान और साहित्य-संस्कृति से बनता है, जिसे आगे लेकर जाती हैं हमारी भाषाएँ। देश की रक्षा केवल सीमाओं की रक्षा से नहीं बल्कि अपनी भाषा संस्कृति की रक्षा से होती है। यदि देश अंदर से खोखला हो गया तो सैनिक रक्षा किसकी करेंगे ? इसलिए यदि देश को आगे बढ़ाना और बचाना है तो हमें अपनी भाषाओं को बचाना होगा, इन्हें अपनाना और इनका प्रयोग व प्रसार बढ़ाना होगा। जहां तक सेना का प्रश्न है, सेना में भारतीय भाषाओं का बहुत महत्व है। भारतीय सेना की संपर्क भाषा हिंदी है। सैनिकों को हिंदी पढ़ाई जाती है। सैनिकों के माध्यम से हिंदी का देशभर में प्रसार होता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देशानुसार औपनिवेशिक मानसिकता से बाहर आते हुए एवं पूरे राष्ट्र को एक भाषायी सूत्र में पिरोने की ओर यह एक महत्वपूर्ण और हमारे लिए यह एक सुखद समाचार है कि इस वर्ष संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में बड़ी संख्या में हिंदी भाषा व अन्य भारतीय भाषाओं के प्रतियोगियों को सफलता मिली है। मैं आशा करता हूँ कि अगले वर्षों में भारतीय भाषाओं के माध्यम से और अधिक प्रतियोगी सफल होंगे।
वैसे तो सभी अधिकारियों का यह दायित्व बनता है कि, वे शासन-प्रशासन में जनता की भाषा का अधिक से अधिक प्रयोग करें, लेकिन जो अधिकारी भारतीय भाषाओं के माध्यम से हिंदी के माध्यम से आए हैं उनका दायित्व औरों से भी बहुत अधिक बन जाता है। राजभाषा हिन्दी एक समृद्ध भाषा है। देश की अखंडता और एकता के लिए राजभाषा हिन्दी का प्रचार एवं प्रसार आवश्यक है। भारतीय भाषाओं के माध्यम से सिविल सेवा में उत्तीर्ण प्रतियोगियों को मेरी विशेष बधाई। मुझे आशा है कि विभिन्न पदों का दायित्व निभाते हुए वी अपने भाषाई दायित्व को भी याद रखेंगे तथा संघ और राज्य की भाषाओं का अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे। भाषा है तो राष्ट्र है।
जय हिंद !
◾ महानिदेशक (सांख्यिकी एवं कार्यक्रम किर्यान्वयन मंत्रालय, भारत सरकार)
-हिंदी माध्यम द्वारा रेकॉर्ड संख्या में यूपीएससी की परीक्षा उत्तीर्ण करना हिंदी प्रेमियों के लिए एक सुखद खबर है। उच्च शिक्षा में हिंदी की पैठ बहुत ही सीमित रही है। इस खबर का अर्थ है कि उच्च शिक्षा में हिंदी की पहुंच बढ़ रही है, साथ ही यह भी माना जा सकता है कि ऐसा इसलिए संभव हो सका कि अब उच्च शिक्षा सामग्री की हिंदी में उपलब्धता बढ़ रही है। यह चाहे मूल रूप में हिंदी में लिखी पुस्तकों द्वारा सम्भव हुआ हो या उच्च शिक्षा की पुस्तकों के हिंदी में अनुवाद और उनके समय-समय पर आवश्यक अद्यतन द्वारा हुआ हो, सब स्वागत योग्य है। उच्च पदों पर हिंदी का प्रयोग कुछ-कुछ हीन भावना का भी सामना करता रहा है। यह सत्य है कि, यह हीन भावना धीरे-धीरे कम हो रही थी पर जब हिंदी माध्यम द्वारा यूपीएससी उत्तीर्ण कर के आने वाले उच्च अधिकारियों की संख्या अनुपात में बढ़ोतरी होगी, तो यह इस हीन भावना को और तेजी से कम करने में प्रभावी होगी और कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग बढ़ाने के रास्ते साफ होंगे।
◾डॉ. सुभाष शर्मा (मेलबोर्न, ऑस्ट्रेलिया)
-इस वर्ष ५४ परीक्षार्थी लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में हिंदी माध्यम से उत्तीर्ण हुए। यह संख्या समुद्र में डूबे उस हिमखंड के सामान हैं, जिसकी सिर्फ चोटी ऊपर से दिखाई दे रही है। अभी जितने परीक्षार्थियों ने हिंदी माध्यम से परीक्षा दी, उससे कहीं अधिक मन बनाए बैठे होंगे कि, क्यों न वह भी हिंदी माध्यम से परीक्षा दें, पर किसी को पठन-पाठन की सामग्री उपलब्ध नहीं, यह भय होगा, कोई हीन भावना से ग्रसित होगा, तो कोई इच्छा होते हुए भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा होगा। आवश्यकता है उन्हें साधन उपलब्ध कराने और प्रोत्साहन दिलाने की। जिन लोगों ने साहस दिखाया, उनका निर्णय सराहनीय है। मेरा विश्वास है, यदि सरकार अपना कामकाज हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में अनिवार्य कर दे तो पासा पलट सकता है। ऐसी स्थिति मेंजो व्यक्ति हिंदी में निपुण नहीं है या जिनका हिंदी माध्यम से सेवा में चयन नहीं हुआ है, उनके लिए हिंदी में सरकारी काम करने के लिए विशेष प्रशिक्षण का प्रबंध हो और जब तक प्रशिक्षण पूरा न कर लें, तब तक नियुक्ति न मिले। ठीक उसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति की नियुक्ति ऐसे प्रदेश में होती है, जिसकी भाषा उसे नहीं आती है, तब उसे उस क्षेत्रीय भाषा का प्रशिक्षण देना चाहिए, ताकि उसे उस भाषा का व्यवहारिक ज्ञान हो जाए। मेरे विचार से इससे एक नई दौड़ शुरू होगी जिसमें हिंदी सीखने और अपनाने की दौड़ लगेगी, साथ ही क्षेत्रीय भाषाओं को सम्मान मिलेगा| प्रशासनिक अधिकारियों को तीन भाषाओं का ज्ञान आवश्य होना चाहिए जिसमें पहली हिंदी, दूसरी एक क्षेत्रीय भाषा तथा तीसरी अंग्रेजी भाषा यही एक रास्ता है जो अंगरेजी से मुक्ति दिला सकता है |
◾प्रेमपाल शर्मा (पूर्व सुंयुक्त सचिव, रेल मंत्रालय, भारत सरकार)
-अपनी भाषा के लिए जंग जारी रहनी चाहिए।
◾अनिल गोरे (पुणे, महाराष्ट्र)
केंद्रीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा के विषय में स्थानीय जनभाषा के माध्यम से संघ लोक सेवा आयोग परीक्षा देने वाले छात्र अधिक संख्या में यशस्वी होते हैं। इससे साफ है, कि कोई भी आशय (कन्टेन्ट) समझने के लिए तथा व्यक्त करने हेतु स्थानीय जनभाषा बेहतर तथा उपयुक्त होती है। स्थानीय जनभाषा के इस गुण का लाभ मिलने से जो छात्र बड़े अधिकारी बन जाते हैं, वे अपने कामकाज में स्थानीय जनभाषा पूर्ण रूप से प्रयोग नहीं करते। इस प्रथा को बदलना आवश्यक है। सरकारी कामकाज में जनता का सहभाग जितना अधिक हो, उतना कामकाज प्रभावी व उपयुक्त होता है। कामकाज में स्थानीय भाषा का प्रयोग जितना अधिक होगा, उतना जनता का सहभाग, सहयोग बढ़ेगा और योजना सफल होने का प्रमाण बढ़ेगा। जब बड़े-बड़े अधिकारी अपनी स्थानीय भाषा में अच्छा आकलन, अभिव्यक्ति कर सकते हैं तो सामान्य जनता का भी वही रूख रहेगा। दूसरा मुद्दा जिसके लिए स्थानीय भाषा में कारोबार लाभदायक वह है, “सारी भारतीय स्थानीय जनभाषा पढ़ने लिखने हेतु इंग्लिश की तुलना में बहुत सुलभ है क्योंकि उच्चारण और लिखाई में ९९.९९ फीसदी सुसंगत है। तीसरा महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि, १०० इंग्लिश शब्दों मे लिखी, पढ़ी या कही जाने वाली बात स्थानीय भारतीय भाषा में ३० से ४० शब्दों में लिखी, पढ़ी या कही जाती है। भारत प्रशासनिक सेवा मे चुने गए सारे अधिकारी अवश्य अंदाजा लगा सकते हैं कि, किसी भी सरकारी पत्राचार, अहवाल, नियमावली, आदेश, प्रारूप लिखने, पढ़ने, कहने में इंग्लिश टालने तथा स्थानीय जनभाषा का प्रयोग करने से अगर ६० से ७० प्रतिशत की बचत हो जाए तो १ दिन में अढाई दिन का कामकाज निपटेगा। इंग्लिश के प्रयोग से ढाई महीने में होनेवाला कार्य एक महीने में होगा। कारोबार में स्थानीय १ भाषा के प्रयोग से समय बचेगा, भाग-दौड़ कम होगी, मानसिक तनाव कम होगा, भारतीय प्रशासनिक सेवा में कार्यरत अधिकारी उनके इस जन्म के साथ अगले दो जन्म के कालावधी में करने लायक कार्य इसी एक ही जिंदगी में कर पाएंगे। भा.प्र.से. के सभी अधिकारियों से प्रार्थना है कि, खुद की भलाई, जनता की भलाई तथा देश की भलाई को ध्यान में रखकर अपने कामकाज में स्थानीय भाषा का १०० प्रयोग करें।
◾सांत्वना मिश्रा
-हिन्दी भाषा के माध्यम से सिविल सेवा में उत्तीर्ण हुए सभी विद्यार्थियों को बहुत-बहुत बधाई। यह वास्तव में हर्ष और प्रसन्नता का समय है। वर्षों से उपेक्षित पड़ी हमारी मातृभाषा के लिए वास्तव में गर्व का विषय है।
◾कमलेश कुमार पाण्डेय (उप्र)
-इस बार खास यह है कि मातृभाषा और हिन्दी ने अंग्रेजी को पछाड़ा है। हिन्दी भाषियों, हिन्दी व मातृभाषा माध्यम के प्रतियोगियों को बहुत बहुत बधाई। समस्त मातृशक्ति (लड़कियां और मातृभाषा) को नमन वन्दन अभिनन्दन।
(सौजन्य:वैश्विक हिंदी सम्मेलन, मुंबई)