रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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भू ने कहा रात्रि से,
देख बीत रहा प्रहर
समय गति अति तीव्र,
भोर फैला रहा चादर।
करने कंटक हीन राह,
श्वेत मेघ करता फुहार
जिद्दी निशा भी देखो,
छोड़ रहा न निज प्रताप।
रात्रि का जो गर्वित भाल,
चमक रहा बनकर चाँद
चूर्ण करने उसका घमंड,
आ रहा है देखो दिकपाल।
लेकर अपना आलोक रश्मि,
कर रहा चाँदनी पर वार
चाँदनी ने दिया उसे प्रकाश,
मानकर दिनकर से हार।
सप्त अश्व के श्वेत रथ,
ले आलोकित तलवार
रवि हाँकता आ रहा,
भू को देने हर्ष अपार।
आलोक की देख छटा,
पुलकित हुए सब प्राणी
चंहु दिशाओं में फैली,
चेतना की अमर कहानी।
सप्त अश्व ले शक्ति अपार,
दिशाओ मे कर रहा वार
धुल गया कालिमा संसार,
हुआ जीवन का गुलजार।
सूर्य सम चमके लेखनी,
हिन्दी का हो उच्च भाल।
रीता न रहे आँचल किसी का
मिले सबको ही सम्मान॥