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लिखता हूँ कविता

 

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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लिखता हूँ कविता काव्य कला, अरुणाचल भाव मन गाता हूँ,
शुभकाम मनोहर मधुशाला, अभिराम गीत रच जाता हूँ।

रचता जीवन उन्मुक्त कथा, जीवन्त दृष्टि अपनाता हूँ।
काव्यात्म भाव जन चित्त व्यथा, दर्पण कविता बन जाता हूँ।

चिरकाल प्रमाणित जग गाथा, रण शौर्य विजय यश लिखता हूँ,
आराध्य शक्ति नारी दुर्गा, मातृत्व प्रेम मुस्काता हूँ।

अभिनव सुष्मित चहुँ प्रकृति धरा, मधुमास मिलन दिल भाता हूँ,
सावन भावन घनघोर घटा, नव मिलन प्रीति बरसाता हूँ।

लतिका लवंग तरुवर कानन, गन्धमादन गंध सुहाता हूँ,
नीलाभ विमल निश्छल निर्मल, अन्तरंग प्रकृति यश गाता हूँ।

मैं कविता कवि मुदिता मधुरा, अलंकार रीति बॅंध जाता हूँ,
काव्यात्म चारु नवरस धारा, ध्वन्यात्म काव्य कहलाता हूँ।

आह्लाद मिलन नव प्रीति प्रिया, गुलज़ार हृदय मदमाता हूँ,
मकरंद सुमन कानन कविता, त्रिगुणी कविता दिल भाता हूँ।
अवसाद मुखी गढ़ सुख खुशियाँ, अपनत्व भाव दिखलाता हूँ,
संवेद हृदय करुणार्द्र क्षमा, सान्त्वना लेप लगाता हूँ।

अति सहज सरल हियतल कविता, सुख-दु:ख चक्र कहलाता हूँ,
पठन श्रवण लेख लेखन मुदिता, नव प्रेम सिन्धु बन जाता हूँ।

नीर-क्षीर विवेकी हंस समा, न्याय नीति शान्ति उद्गाता हूँ,
विस्तारवादिता हाहाहल, खल सोच प्रकृति दु:ख पाता हूँ।

उद्यत बलिदान चरण भारत, पुरुषार्थ काव्य रच जाता हैै।
है ‘विश्व दिवस भाषा’ कविता, साहित्य कीर्ति रस गाता है।

संगीत मीत सम्प्रीति गीत, अनमोल तुष्टि दे जाता है।
कवि सारस्वत लेखक कविता, बधाई हियतल हर्षाता हूँ॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥